छत्तीसगढ़ में तमनार कोयला खदान परियोजना की पर्यावरणीय मंजूरी रद्द
अंधाधुंध उत्खनन का नज़रिया न सिर्फ गैर-कानूनी है बल्कि अस्वीकार्य भी है
सुशान्त कुमारइसे एक ऐतिहासिक जीत के रूप में देख सकते हैं कि नेशनल ग्रीन ट्राब्यूनल (एनजीटी) ने महाराष्ट्र पॉवर जनरेशन कंपनी लिमिटेड (महाजेन्को) को दी गई पर्यावरणीय मंजूरी रद्द कर दी है।

यह मंजूरी कंपनी को छत्तीसगढ़ के रायगढ़ जिले में तमनार स्थित गारे पल्मा सेक्टर-II कोयला खदान परियोजना के लिए दी गई थी। प्रस्तावित खदान तमनार के 14 गांवों में 2583.48 हैक्टर क्षेत्र में फैली है। अदानी एंटरप्राइजेज लिमिटेड तमनार में महाराष्ट्र स्टेट पावर जेनरेशन कंपनी लिमिटेड की प्रस्तावित कोयला खदान परियोजना की डेवलपर और ऑपरेटर हैं।
गारे पाल्मा सेक्टर-II परियोजना को 2015 में पहली बार प्रस्तावित होने के बाद से क्षेत्र के लोगों के बीच भारी विरोध का सामना करना पड़ा। सितंबर 2019 में विरोध के बीच एक सार्वजनिक सुनवाई आयोजित की गई जिसके कारण प्रभावित गांवों के कई लोगों के खिलाफ झड़पें और एफआईआर दर्ज की गईं।
इस तरह दोषपूर्ण जन सुनवाई तथा मौजूदा कानूनों के तमाम उल्लंघनों और एनजीटी फैसलों के बावजूद, वन, पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MoEFCC) की विशेषज्ञ सलाहकार समिति ने 11 जुलाई 2022 को इस परियोजना को पर्यावरणीय मंजूरी दे दी थी।
मामले मेें प्रभावित व्यक्तियों प्रेमशिला राठिया (ग्राम बंधापली), नारद, कनाही पटेल (ग्राम कोसमपली) और रिनचिन ने इस निर्णय को अक्टूबर 2022 में एनजीटी के समक्ष रखते हुए चुनौती दी और एक याचिका दायर की। याचिकाकर्ताओं ने व्यक्तिगत रूप से उपस्थित होकर स्वयं इस मामले में पैरवी भी की।
इस तरह काफी विचार-विमर्श के बाद एनजीटी ने पिछले माह जनवरी में इस याचिका को स्वीकार किया और गारे-पल्मा सेक्टर-II की पर्यावरणीय मंजूरी रद्द कर दी। एनजीटी ने परियोजना को पर्यावरणीय मंज़ूरी दिए जाने के संदर्भ में कई कानूनी उल्लंघन किए थे। लोगों से किसी तरह की सलाह-मशवरा नहीं किया गया था, जन सरोकारों की अनदेखी की गई थी स्थानीय लोगों को सही, पक्षपात-रहित, निष्पक्ष और जायज़ जन सुनवाई से वंचित रखा गया था।
यह भी कि इसके दुष्परिणाम तथा स्वास्थ्य पर पडऩे वाले प्रभाव पर समुचित ध्यान न दिया गया था। इसमें वह सारे चिंताएं भी शामिल थी जिन्हें भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की रिपोर्ट में प्रस्तुत किया गया था।
इसके साथ एनजीटी द्वारा पूर्व में शिवपाल भगत बनाम भारतीय संघ के मामले में दिए गए दिशानिर्देशों पर ध्यान न दिया जाना, खास तौर से क्षेत्र की वहन क्षमता सम्बंधी अध्ययन करने को लेकर, जबकि यह क्षेत्र पहले ही अनगिनत खनन व औद्योगिक परियोजनाएं के कारण गंभीर पर्यावरणीय क्षति को झेल रही है। इस विशाल परियोजना के प्रभाव के आकलन में समुचित जल वैज्ञानिक अध्ययन का अभाव साफ नजर आता है।
एनजीटी का यह फैसला तमनार व घरघोड़ा के लोगों के लिए एक बड़ी जीत और राहत की बात है। पीडि़तों ने मौजूदा खनन व औद्योगिक गतिविधियों से अपनी जीविका और पर्यावरणीय अधिकारों की रक्षा के लिए लंबी लड़ाई लड़ी है। विडंबना देखिए बारह कोयला खदानें और कई सारे ताप बिजली घर, कोल-वॉशरीज़, और स्पॉन्ज आयरन संयंत्र पहले ही इस क्षेत्र में संचालित हैं। विभिन्न निजी व सरकारी कंपनियों ने क्षेत्र में कम से कम 10 और कोयला खदानों के प्रस्ताव दिए हुए हैं।
उपरोक्त मौजूदा व प्रस्तावित परियोजनाओं के कारण स्वास्थ्य सम्बंधी और पर्यावरणीय प्रभावों, आदिवासी ज़मीनों के अधिग्रहण की कानूनी अनियमितताओं और वन अधिकारों की अनदेखी होता रहा है।
उत्खनन में शामिल कंपनियों द्वारा लगातार पर्यावरणीय नियमों का उल्लंघनों पर सिविल सोसायटी समूहों द्वारा अपना पक्ष रखा गया है। इस मामले में खास तौर से शिवपाल भगत व अन्य बनाम भारतीय संघ व अन्य (OA 104/2018) और दुकालू राम व अन्य बनाम भारतीय संघ व अन्य (OA 319/2014 CZ) के मामलों पर गौर करनी चाहिए।
ताज़ा एनजीटी फैसला में याचिकाकर्ता कनाही पटेल, प्रेमशिला राठिया और रिनचिन ने दक्षिण कोसल को बताया कि यह फैसला एक शक्तिशाली संदेश देता है कि अंधाधुंध उत्खनन का नज़रिया न सिर्फ गैर-कानूनी है बल्कि अस्वीकार्य भी है। और इस इलाके में विकास को देखने का एक नया नज़रिया ज़रूरी है। हम उम्मीद करते हैं कि यह फैसला पर्यावरणीय और सामाजिक न्याय की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम साबित होगा।
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