आईएमएफ की चेतावनी कि भारत के दिवालिया होने की प्रबल संभावना
संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर ने चेताया था
विश्वजीत सिंहअभी दिसंबर 2023 में आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने इस बार खुलकर भारत सरकार को चेतावनी दी है कि भारत में सरकारों का कुल क़र्ज जीडीपी के बराबर हो रहा है, बल्कि उससे बड़ा होने जा रहा है। यह किसी भी वित्तीय व्यवस्था के लिए चरम खतरे का बिंदु है.

देश के बड़े-बड़े सार्वजनिक संस्थानों, फैक्ट्रीज, प्लांट्स, कंपनियों के बेच देने के बावजूद यदि ऐसी हालत है, तो यह सिर्फ और सिर्फ मोदी सरकार के बैड पॉलिसी, बैड गवर्नेंस एवं क्रोनी कैपिटलीज्म का ही परिणाम है.
अभी दिसंबर 2023 में आईएमएफ (अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष) ने इस बार खुलकर भारत सरकार को चेतावनी दी है कि भारत में सरकारों का कुल क़र्ज जीडीपी के बराबर हो रहा है, बल्कि उससे बड़ा होने जा रहा है। यह किसी भी वित्तीय व्यवस्था के लिए चरम खतरे का बिंदु है.
भारत की इस साल की ब्याज की देनदारी उसके कुल राजस्व का लगभग 47 से 48% हिस्सा ले जाएगी.
पिछले कुछ महीनों से केवल क़र्ज का मामला सुर्खियों में है। चाहे वह क़र्ज सरकार का हो, आपकी हमारी बैलेंस शीट का हो, हमारे क्रेडिट कार्ड का हो, पर्सनल लोन हो, या विदेश से लिया गया क़र्ज हो.
ये सुर्खियां इसलिए भी हैं कि इस साल भारत सरकार पहली बार वर्ल्ड मार्केट में अपने बॉण्ड भी बेचने जा रही है.
संविधान सभा में डॉ. अंबेडकर ने चेताया था:
1949 में संविधान सभा में बहस के दौरान डॉ. अम्बेडकर ने कहा था कि: किसी भी स्थिति में किसी भी सरकार को मनचाहे ढंग से क़र्ज उठाने का अधिकार नहीं होना चाहिए। उन्हें किसी भी स्थिति में ऐसी छूट नहीं दी जानी चाहिए। संसद को क़ानून बनाकर इस क़र्ज की सीमा तय करनी चाहिए, और यदि उन्हें क़र्ज बढ़ाना है तो उन्हें संसद के पास आना चाहिए, अपनी सफाई देनी चाहिए, उसके बाद ही उन्हें अतिरिक्त क़र्ज उठाने की अनुमति मिलनी चाहिए.
सरकारें हमारे, आपके बचत से ही क़र्ज लेती हैं। आम लोग अपनी जो बचतें बैंकों में रखते हैं, बैंक वही बचतें सरकारों को क़र्ज के रूप में दे देते हैं। आज तो हालत यह हो गयी है कि सरकार इस क़र्ज का 46% तो पुराने क़र्ज का ब्याज देने में दे दे रही है.
अब भारत दुनिया के उन खतरे की स्थिति वाले मुल्कों में शामिल हो गया है, जिनका क़र्ज जीडीपी के बराबर हो गया है.
अगर डॉ. अम्बेडकर का सुझाया हुआ क़ानून होता तो हम सरकार से यह पूछ सकते थे कि आखिर क़र्ज का यह पैसा गया कहां...?
आईएमएफ ने यह चेतावनी 2 साल पहले भी दी थी, लेकिन दो साल बीत गये, सरकार की ओर से इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी। इस बार आईएमएफ की चेतावनी पहले से ज्यादा तीव्र है। दो साल पहले जब चेतावनी आयी थी तब श्रीलंका में क़र्ज का संकट चल रहा था, दुनिया की निगाहें वहां लगी हुई थीं.
उसी समय आईएमएफ ने बताया था कि भारत का कुल सार्वजनिक क़र्ज, जिसमें केंद्र और राज्य सरकारों और सरकारी कंपनियों का क़र्ज भी शामिल है, जीडीपी के बराबर पहुंचने वाला है। यानि भारत के सार्वजनिक क़र्ज के कुल मूल्य के बराबर ही उसकी अर्थव्यवस्था का कुल उत्पादन है। इतना क़र्ज भारत की राज्य सरकारों, लगभग 200 कंपनियों और केंद्र सरकार ने ले रखा है.
विश्वबैंक और आईएमएफ के पैमाने के अनुसार किसी भी देश के कुल सार्वजनिक क़र्ज का स्तर उसके जीडीपी के 60% से ज्यादा नहीं होना चाहिए। यह एक आदर्श स्थिति है, इसके ऊपर खतरे की घंटी बजना शुरू हो जाती है। आईएमएफ की अक्टूबर 2023 की रिपोर्ट आने तक भारत के क़र्ज के हालात और भयावह हो गये थे.
अब भारत दुनिया के उन खास देशों में शामिल हो गया है, जिन्हें हम संकटग्रस्त देश कह सकते हैं। इन देशों में वेनेजुएला, इटली, पुर्तगाल और ग्रीस जैसी बीमार अर्थव्यवस्थाएं हैं। ग्रीस डिफॉल्ट हो चुका है, पुर्तगाल संकटग्रस्त है, इटली 2008-09 के संकट में ही घायल हो चुका है और वेनेजुएला की अर्थव्यवस्था लगातार संकट में चल रही है.
इन देशों के अलावा इस संकटग्रस्त समूह में भूटान, सूडान और मोजाम्बिक जैसी छोटी अर्थव्यवस्थाएं हैं, जिनकी अर्थव्यवस्थाएं बहुत सीमित संसाधनों पर चलती हैं। इसलिए आज भारत वहां खड़ा है, जहां इसकी अर्थव्यवस्था की तुलना एक तरफ इन संकटग्रस्त देशों से की जा सकती है, तो दूसरी तरफ इन छोटे देशों से की जा सकती है.
ऐसा भी नहीं है कि यह हालत कोविड की वजह से हुई है, हलांकि सरकार ने सफाई देते हुए कोविड को कारण बताया। कोविड से पहले की अपनी आर्थिक समीक्षाओं में खुद सरकार ने स्वीकार किया था कि क़र्ज और जीडीपी का अनुपात 2016 के बाद से ही बिगड़ना शुरू हो गया था। तब तक कोविड कहीं नहीं था.
2016 के बाद से सरकार ने भारी मात्रा में क़र्ज लेना शुरू किया, हलांकि इससे अर्थव्यवस्था को क्या फायदा हुआ, इसे मापने का कोई आंकड़ा नहीं है, न ही सरकार ने कभी बताया है। लेकिन 2016 में यह अनुपात 45% था, जो 2020 में, कोविड से पहले ही 60% हो गया था। इसके साथ ही राज्यों के क़र्ज का अनुपात भी 2016 में 25% था, जो कोविड से पहले ही, 2020 में, बढ़कर 31% हो गया था.
यानि कोविड से पहले ही राज्यों का क़र्ज भी बढ़ रहा था। कोविड से पहले ही केंद्र और राज्यों का कुल क़र्ज जीडीपी का 91% हो चुका था। आज की स्थिति में भारत की सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों का क़र्ज, प्राइवेट क़र्ज और बाक़ी क़र्ज मिलाकर जीडीपी से बड़ा हो चुका है.
आईएमएफ की ग्लोबल फाइनेंशियल रिपोर्ट के अनुसार भारत की अर्थव्यवस्था में बैंकों और सरकार का एक नेक्सस (गठजोड़) काम कर रहा है, इसी के कारण यह क़र्ज का फंदा (डेट ट्रैप) तैयार हो रहा है। सरकार अंधाधुंध खर्च करती है, बड़ी-बड़ी योजनाओं के लिए। एक तरफ वह राज्यों को खर्च कम करने की सलाह देती है, लेकिन खुद क़र्ज बढ़ाती जाती है.
बैंकों से कहा जाता है कि वह उसके कार्यक्रमों को फाइनेंस करें। बैंक हमारी जमाओं के द्वारा सरकारी बॉण्ड्स और ट्रेजरी बिलों में निवेश करते हैं। यह पैसा सरकार को मिल जाता है। इसके अलावा हमारी छोटी बचतों, जैसे डाकघर बचत योजना, सुकन्या समृद्धि योजना का पैसा भी सरकार को मिल जाता है। पीपीएफ का पैसा भी सरकार के पास पहुंचता है.
आज बैंकों की टोटल क़र्ज होल्डिंग में सरकारी क़र्ज का हिस्सा 30% से ऊपर है। इस पैमाने पर भारत दुनिया के सबसे चुनौतीपूर्ण देशों में है। इससे ज्यादा खराब स्थिति केवल घाना, मिस्र और पाकिस्तान की है। इसके अलावा बैंकों की कुल परिसंपत्तियों में सरकारी प्रतिभूतियों, यानि सिक्योरिटीज के हिस्से के मामले में भी भारत दुनिया में तीसरे स्थान पर पहुंच चुका है। बैंकों की परिसंपत्तियों का बड़ा हिस्सा सरकार को क़र्ज देने में फंसा हुआ है.
पिछला पूरा साल जीएसटी कलेक्शन की सुर्खियों से भरा रहा। रिकॉर्ड, 1 लाख 20 हजार करोड़ रुपये के आस-पास संग्रह किया गया। सरकार ने राज्यों को जीएसटी का कंपेंसेशन देना भी बंद कर दिया। शानदार राजस्व, टैक्स संग्रह हुआ, इसके बावजूद सरकार ने 2023-24 में 15.43 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज लिया.
कोविड के लॉकडाउन के दौरान सरकार ने जितना क़र्ज लिया था, जिसके आधार पर कहा जा रहा है कि कोविड के कारण क़र्ज संकट आया है, वह मात्र 13 लाख करोड़ रुपये के आस-पास था। 2023-24 का यह क़र्ज उससे भी ज्यादा है। इस साल सरकार ने क़र्ज भी ज्यादा लिया, और वह भी महंगी ब्याज दरों पर। जबकि पिछले एक साल से सरकार के 10 साल वाले बॉण्डों पर 7% के आस-पास ब्याज दर दिखाई दे रही है.
पिछले आर्थिक सर्वेक्षण में सरकार ने खुद माना कि सरकार का 70% क़र्ज छोटी अवधि, यानि 10 साल तक का है। दरअसल सरकार में इतना दम ही नहीं है कि वह लंबी अवधि के क़र्ज का बोझ उठा सके। अभी ताजा आंकड़ों के अनुसार इस साल सरकार पर ब्याज की देनदारी अब तक के रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच चुकी है.
वित्त मंत्रालय की तिमाही क़र्ज रिपोर्ट के अनुसार 2023 में 4.21 लाख करोड़ सरकार को पुराना क़र्ज चुकाना पड़ा, क्योंकि ये ट्रेजरी बिल मेच्योर हो गये थे। इसके लिए उसे नया क़र्ज लेना पड़ा। सरकार की आर्थिक समीक्षा और दस्तावेजों के अनुसार 2023 से 2028 के पांच सालों में सरकार पर क़र्ज के रिपेमेंट का बोझ औसत दर की तुलना में चार गुना बढ़ जाएगा। यह कम अवधि का वही क़र्ज है, जिसकी देनदारी अब सामने आ खड़ी होने लगी है.
यह सारी जानकारी सार्वजनिक रूप से उपलब्ध है। इसी की ओर आईएमएफ ने भी इशारा किया है-
1- सार्वजनिक क़र्ज का जीडीपी के बराबर पहुंच जाना.
2- कम अवधि के क़र्ज लेना.
3- क़र्ज का बड़ा हिस्सा पुराने क़र्ज को चुकाने में खर्च होने लगना.
4- कोविड के खत्म हो जाने के बाद भी सरकार के क़र्ज लेने में कोई कमी नहीं आयी, बल्कि क़र्ज बढ़ता ही जा रहा है.
इन सारी चीजों ने मिलकर आईएमएफ को यह बताने को मजबूर किया कि भारत का क़र्ज खतरनाक स्थिति में पहुंच गया है। आईएमएफ केवल केंद्र और राज्य सरकारों के क़र्ज की चर्चा करता है, लेकिन क़र्ज की दुनिया तो इससे बहुत बड़ी है। कंपनियों द्वारा लिया गया क़र्ज, निजी लोगों द्वारा क्रेडिट कार्ड पर लिया गया क़र्ज, लोगों के होम लोन, पर्सनल लोन वगैरह.
2023 में, जबकि भारत में जीडीपी के अनुपात में परिवारों की शुद्ध बचत घट कर 5.1% रह गयी है, इसी साल रिजर्व बैंक द्वारा प्रोजेक्ट किया गया राजकोषीय घाटा केंद्र का 5.9% और राज्यों का 3.1% मिलाकर समग्र राजकोषीय घाटा 9% हो गया है। यानि भारत के लोग कुल मिलाकर जितना बचा रहे हैं, उससे ज्यादा घाटा तो सरकारों का है.
यह स्थिति इसलिए खतरनाक है कि इस अंतर को पाटने वाली पूंजी की जरूरत को पूरा करने के लिए आपको या तो ज्यादा नोट छापने पड़ेंगे और मुद्रास्फीति को हमेशा के लिए आमंत्रित करना पड़ेगा, नहीं तो आपको विदेश से क़र्ज लेना पड़ेगा.
सीएजी की एक रिपोर्ट आयी थी, जिसमें बताया गया था कि 2021-22 के दौरान भारत में सरकार ने विदेशी क़र्ज की सही जानकारी ही देश को नहीं दी, उसे छिपाया गया और कम करके बताया गया। सरकारी आंकड़ों में विदेशी क़र्ज 4.39 लाख करोड़ दिखाया गया था, जबकि यह वास्तव में 6.58 लाख करोड़ था.
इसमें सरकार ने डॉलर और रुपये के ग़लत विनिमय मूल्य को आधार बनाया था, क्योंकि वह पुराना विनिमय मूल्य था। इस तरह सरकार ने करीब 2.91 लाख करोड़ रुपये का क़र्ज अपने खातों में छिपा लिया था। सीएजी ने अपने फुटनोट में यह बात कही थी.
लेकिन क़र्ज चाहे विदेशी हो, या देशी, वह क़र्ज ही होता है। क़र्ज रक्तबीज की तरह होता है, वह खत्म नहीं होता। उसे एक खाते की बजाय दूसरे खाते में पहुंचाया जा सकता है, लेकिन वह कहीं न कहीं रहेगा, और निकल कर बाहर दिखता रहेगा.
यह आश्चर्य और चिंता का विषय है कि ऐसे समय में, जब भारत में घरेलू क़र्ज की स्थिति विस्फोटक हो चुकी है, परिवारों का क़र्ज, बैंकों में छोटी बचतों पर क़र्ज, सरकार के सिस्टम का क़र्ज सबसे ज्यादा चुनौतीपूर्ण और विस्फोटक स्थिति में है, ऐसे में सरकार विदेशी बॉण्ड्स जारी करने और सरकारी बॉण्ड्स को विदेशी बाजारों में सूचीबद्ध कराने जा रही है। यह डरने वाली बात है.
आईएमएफ ने कहा है कि भारत सरकार द्वारा घरेलू बैंकों से लिया गया जो क़र्ज है, वह एक क़िस्म का ‘डूम लूप’, यानि दुर्भाग्यपूर्ण भंवर है.
बैंकों से क़र्ज लेते जाने से सिस्टम में एक खास क़िस्म का संकट पैदा हो जाता है, और यह संकट बैंकों को भी ले डूबता है, और सरकारों को भी.
इस साल जून से भारतीय सॉवरिन बॉण्डों की ट्रेडिंग शुरू करने की योजना है और 3 ट्रिलियन डॉलर मिलने की उम्मीद है। लेकिन यहीं से सबसे बड़ा जोखिम भरा वक़्त शुरू हो रहा है। आईएमएफ की चेतावनी ऐसे वक़्त पर आयी है, जब क़र्ज को लेकर बहुत सारी चेतावनियां और खतरे की घंटियां बज रही हैं.
सरकार पर देशी बैंकों की देनदारी रिकॉर्ड स्तर पर होगी, क्योंकि 2023 से 28 के बीच सबसे ज्यादा घरेलू क़र्ज वापस करना है, भारत सरकार जब ‘जे पी मॉर्गन’ के ग्रुप पर जाकर अपने बॉण्ड्स को सूचीबद्ध करायेगी और जून से इनकी ट्रेडिंग शुरू होगी, तो वैश्विक निवेशक बाजार सरकार का जो पहला आंकड़ा देखेंगे, वह क़र्ज का ही होगा, क्योंकि सॉवरिन बॉण्ड्स का मार्केट सबसे ज्यादा सरकारों के क़र्ज पर चिढ़ता है.
ऊपर से भारत की ‘सॉवरिन नेटिंग’ (जोखिम को कम करने की सरकारी कवायद) सबसे ज्यादा खराब है। एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा! भारत की सॉवरिन नेटिंग ठीक कराने के लिए सरकार बहुत कोशिश कर रही है, लेकिन पिछले एक दशक से सरकार की साख में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है। क़र्ज की पूरी कुंडली सबके सामने आ जाने से अब यह कवायद यूं भी बेकार हो जाएगी.
लेकिन फिलहाल कैंसरग्रस्त हो चुकी अर्थव्यवस्था के इलाज करने से इतर चुनावों में जाने को तैयार मोदी सरकार विश्व की तीसरी अर्थव्यवस्था एवं रामराज्य के फर्जी जुमले फेकते हुए देश की जनता को गुमराह करने मे व्यस्त है.
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