शिक्षिका ने कहा शिक्षा की देवी सावित्री बाई फुले हैं, सरस्वती नहीं

सरस्वती बनाम सावित्रीबाई फुले

सिद्धार्थ रामू

 

यहां जिले के लकड़ाई गांव के स्कूल में कुछ गांव के लोगो और स्कूल शिक्षिका(हेमलता बैरवा) के बीच विवाद हुआ। शिक्षिका हेमलता ने सरस्वती की तस्वीर रखने पर कड़ी आपत्ति जताई। और कहा यहां सावित्री बाई फुले के साथ सरस्वती का क्या काम, शिक्षा में उनका योगदान क्या है?

दोनों पुलिस में मुकदमा भी दर्ज कराया है।

बहुजन शिक्षिका को सलाम के सावित्री बाई फुले बनाम सरस्वती के सच को देखते हैं।

क्या यह सच नहीं है कि‘ज्ञान की देवी सरस्वती’ को शूद्रों-अतिशूद्रों और स्त्रियों से घृणा और सवर्ण पुरूषों से ही प्रेम करती थीं। द्विजों की ज्ञान परंपरा में सरस्वती ज्ञान और शिक्षा की देवी हैं। वे ब्रह्मा की मानसपुत्री हैं जो विद्या की अधिष्ठात्री देवी मानी गई हैं। इनका नामांतर 'शतरूपा' भी है। इसके अन्य पर्याय हैं, वाणी, वाग्देवी, भारती, शारदा, वागेश्वरी इत्यादि। ये शुक्लवर्ण, श्वेत वस्त्रधारिणी, वीणावादनतत्परा तथा श्वेतपद्मासना कही गई हैं।

कहा जाता है कि इनकी उपासना करने से मूर्ख भी विद्वान् बन सकता है। माघ शुक्ल पंचमी को इनकी पूजा की परिपाटी चली आ रही है। देवी भागवत के अनुसार ये ब्रह्मा की पत्नी हैं।सरस्वती को अन्य नामों में शारदा, शतरूपा, वीणावादिनी, वीणापाणि, वाग्देवी, वागेश्वरी, भारती आदि कई नामों से जाना जाता है।

आज भी वे भारतीय शिक्षा संस्थानों में ज्ञान और शिक्षा की देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं, हर शिक्षक और विद्यार्थी से यह उम्मीद की जाती है, वह उनकी आराधना और पूजा करे। प्रश्न यह उठता है कि जिस देवी की महानता, ज्ञान, करूणा और कृपा हिंदू धर्मशास्त्रों , महाकाव्यों, ऋषियों, साहित्यकारों, शास्त्रीय संगीतकारों आदि ने इतनी भूरी-भूरी प्रशंसा किया है। 

जिनका गुणगान करने के लिए कितने श्लोक, गीत और कविताएं लिखी गई हैं, उस देवी की कृपा शूद्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं पर क्यों नहीं होती थी? क्यों वे इन तबकों के पास नहीं आती थीं,क्यों ये देवी सवर्ण पुरूषों की जीभ पर तो वास करती थीं, लेकिन इन तबकों की जीभ से वे इतनी नफरत क्यों करती थीं?  क्यों हजारों वर्षों तक ये तबके अशिक्षित रहे?

 क्यों  अंग्रेंजों के आने के बाद ही शिक्षा का दरवाजा इन तबकों के लिए खुला? क्या सरस्वती भी वर्ण व्यवस्था में विश्वास करती थीं?  क्या वे भी स्मृतियों के इस आदेश का पालन करती थीं कि, ‘स्त्रीशूद्रौ नाधीयाताम्’ यानी स्त्री तथा शूद्र अध्ययन न करें।

इसका कारण यह तो नहीं था कि वे उस ब्रह्मा की मानस पुत्री या कुछ हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार पत्नी है, जिन्होंने वर्ण व्यवस्था की रचना की है। एक स्त्री होते हुए भी उन्हें स्त्रियों से इतनी घृणा क्यों थी? क्या वे इस हिंदू शास्त्रों की इस आदेश का पालन करती थीं कि 'पतिरेको गुरु: स्त्रीणाम्’ यानी पति ही एकमात्र स्त्रियों का गुरू होता है। यानी उसे अलग से शिक्षा लेने की कोई जरूरत नहीं है।

भले ही सरस्वती की प्रशंसा में श्लोक लिखे गए हों, महाकवि निराला ने उनकी गुणगान करते हुए ‘वर दे वीणा वादिनी वर दे’ जैसी कविता लिखी हो, लेकिन सच यह है कि सरस्वती पूरी तरह वर्ण व्यवस्था की रक्षा करती रही हैं और शूद्रों-अतिशूद्रों और स्त्रियों के अशिक्षित बनाये रखने की योजना में शामिल रही हैं।

अकारण तो नहीं है कि  ज्ञान और शिक्षा  की देवी के रूप में सरस्वती का गुणगान करने वाले अधिकांश व्यक्तित्व सवर्ण पुरूष ही थे। शायद ही किसी दलित-बहुजन रचनाकार ने सरस्वती को ज्ञान या शिक्षा की देवी मानते हुए कोई गीत या कविता लिखी हो।

क्या समय नहीं आ गया है कि सरस्वती को शिक्षा संस्थानों से बाहर कर उनकी जगह ज्ञान और शिक्षा के प्रेरणास्रोत के रूप में सावित्री बाई फुले को स्थापित किया जाय। जिन्होंने 1848 में शू्द्रों-अतिशूद्रों और महिलाओं के लिए पहला स्कूल खोला था।

भारत के वामपंथी प्रगतिशीलों के एक हिस्से का भी सरस्वती से लगाव रहा है, वे तरह-तरह उनके पक्ष में तर्क देते रहे हैं। लेकिन सचेत दलित-बहुजनों ने सरस्वती को सवर्ण पुरूषों पर ही कृपा करने वाली देवी के रूप में  ही देखा है। इस पूरे प्रसंग में मैं अपने शिक्षक प्रो. जनार्दन जी को नहीं भूल सकता।

प्रो. जनार्दन जब गोरखपुर विश्विद्यालय के हिंदी विभाग के अध्यक्ष हुए, तो उन्होंने विभागाध्यक्ष के अपने कमरे से सरस्वती की प्रतिमा को बाहर निकलवा दिया।

विश्वविद्यालय में हड़कंप मच गया। उन्होंने कहा मुझे पढ़ने और विभागाध्यक्ष होने का अवसर सरस्वती की कृपा से नहीं, संविधान से मिला है।

 

 

बहुजन शिक्षिका हेमलता बैरवा को सलाम!

सरस्वती बनाम सावित्रीबाई फुले: बहुजन शिक्षिका ने कहा शिक्षा की देवी सावित्री बाई फुले हैं, सरस्वती नहीं। राजस्थान के बारां जिले में गणतंत्र दिवस के दिन सावित्री बाई फुले बनाम सरस्वती को लेकर संघर्ष हुआ।

यहां जिले के लकड़ाई गांव के स्कूल में… pic.twitter.com/lycQCvRGcM

— The Ambedkarite (@ambedkarite) January 29, 2024

Add Comment

Enter your full name
We'll never share your number with anyone else.
We'll never share your email with anyone else.
Write your comment

Your Comment