राजा पोरस, हेमंत सोरेन और नीतीश कुमार
पुरूवास का जवाब था- जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है
प्रेमकुमार मणिसिकंदर ने जब भारत पर आक्रमण किया था, तब उसकी मुठभेड़ राजा पुरूवास से हुई थी, जो झेलम और चिनाब के बीच के इलाके का शासक था. तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर की सहायता की थी. जैसा कि इस देश में हमेशा से होता रहा है अपने भीतरी दुश्मनों के डाह-द्वेष के कारण ही भारत हारता रहा है.

सब जानते हैं, लड़ाई में पुरूवास, जिसे यूनानी पोरस कहते थे, हार गया था. उस लड़ाई के विवरण में नहीं जाऊंगा. बस केवल एक संवाद को रखना चाहूंगा, जो पोरस और सिकंदर के बीच शायद हुआ था. कहते हैं, पराजित पुरूवास को जब सिकंदर के पास लाया गया, तब सिकंदर ने उस से पूछा- तुम्हारे साथ कैसा व्यवहार किया जाय?
पुरूवास का जवाब था- जैसा एक राजा दूसरे राजा के साथ करता है
सिकंदर आश्चर्य चकित हुआ. कितनी खुद्दारी और कितना साहस भरा जवाब ! लड़ाई के छल-छद्म में सिकंदर भले जीत गया हो,इस संवाद में उस ने स्वयं को पराजित अनुभव किया. कहते हैं, उसने पोरस को गले लगाया, मित्रता की और उसका राज ससम्मान उसे वापस किया.
पुरूवास किसान राजा रहा होगा. उसका इलाका जाट-अहीरों का इलाका है. इन्हीं का पुरखा रहा होगा. पुरू नाम से महाभारत कथा के पुरू का खयाल आता है. खैर ,जो भी था, बहादुर था वह. जम्बूद्वीप का हीरो.
यूनानी योद्धा सिकन्दर को दो ही इंसान यहाँ मिले थे. एक पोरस और दूसरा ऋषि दण्डायन. यूनान का स्वप्निल बहादुर और दार्शनिक अरस्तु का शिष्य वाकई वीर रहा होगा कि इनके महत्व को समझ सका. हमारा जम्बूद्वीप तब इस चरित्र का था. मुझे पिछले दिनों पुरूवास का शौर्य झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के उस भाषण में दिखा, जिसे उन्होंने विधानसभा में दिया. मैं जानता हूँ हमारी बौद्धिक मंडली इसका आकलन नहीं कर सकेगी.
लेकिन उनका भाषण अब्राहम लिंकन के गेट्टीस्बर्ग सम्बोधन, (जिसे 19 नवंबर 1863 को पेन्सिनवालिया के गेट्टीस्बर्ग नगर में दिया गया था, ) और जवाहरलाल नेहरू के आज़ादी की रात ( 15 अगस्त 1947 ) को दिए गए ट्रिस्ट विथ डेस्टिनी नामक भाषण की श्रेणी का है. मेरी यह तुलना अंग्रेजीदां द्विज बुद्धिजीवियों को अटपटा लग सकती है. लेकिन मैं अपनी राय पर कायम हूँ.
हेमंत सोरेन को ईडी ने गिरफ्तार किया हुआ है. उन पर साढ़े आठ एकड़ जमीन के मामले को लेकर कार्रवाई चल रही है. नए मुख्यमंत्री केलिए फ्लोर टेस्ट में मतदान केलिए वह विधानसभा लाए गए थे. ईडी का आदेश था आप वहां कुछ बोलेंगे नहीं. लेकिन हेमंत बोले. इसलिए कि ईडी का हस्तक्षेप ही गैर संवैधानिक था.
हेमंत ने उन परिस्थितियों का जिक्र किया जिनके तहत उन्हें गिरफ्तार किया गया. बड़ी बात यह कि कानूनी पचड़े और अपनी बौद्धिक अल्पज्ञता को रेखांकित किया. कहा कि हम सीधे-साधे लोग कानूनी पचड़ों को उतना नहीं जानते और कुछ लोग इसका फायदा उठाते हैं.
जाने कितने दिनों से दीक्कु लोग आदिवासियों को ऐसे ही उल्लू बनाते और काबू में लेते रहे हैं. बिरसा मुंडा का संघर्ष तो ऐसी ही जालफ़रेबियों के खिलाफ था. आदिवासी मुगलों से नहीं हारे,लेकिन अंग्रेजी कोर्ट-कचहरी ने उन्हें गुलाम बना दिया. अंग्रेजी राज से उनका विद्रोह 1857 से भी पहले से था.
हेमंत ने आदिवासियत अस्मिता की बात उठाई.आदिवासी, पिछड़े, दलित जब हवाई जहाज में बैठते हैं, पांच सितारा होटलों में ठहरते हैं और बीएमडब्लू गाड़ी से चलते हैं, तो कुछ लोगों को सहन नहीं होता. उन्होंने भरे संकल्प के साथ कहा कि मैं आंसू नहीं बहाऊंगा, संघर्ष करूँगा और अपने आंसू वक़्त केलिए रखूँगा. आदिवासी माथा झुका कर चलना नहीं जानते और आज़ाद ख़याली उनके खून में है.
पूरे भाषण को कोई भी गूगल पर ढूँढ सकता है. यह एक कविता के शिल्प में है. इसीलिए मैंने इसे लिंकन और नेहरू के ऐतिहासिक भाषणों से जोड़ कर देखा है.
हेमंत के बाद आते हैं नीतीश कुमार. कभी हमलोग मित्र रहे हैं. अनेक संघर्षों और सक्रियताओं में साथ रहे हैं. लेकिन कल जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनका फोटो और वक्तव्य देखा, सिर शर्म से झुक गया. क्या कोई इंसान इतना नीचे गिर सकता है ! मैं आज भी कहता हूँ उनमें अनेक खूबियां रही हैं. लेकिन मुख्यमंत्री बने रहने केलिए कोई इतना नीचे कैसे गिर सकता है.
कल तक वह इंडी गठबंधन के शिल्पकार थे. उनके चापलूस उन्हें प्रधानमंत्री मटेरियल बता रहे थे. यह मटेरिअल पखवारे भर में इतना पिलपिला हो गया कि जिसके खिलाफ लड़ने चला था, उसके बाज़ू में खड़ा हो, उसे गुलदस्ता देते हुए गिड़गिड़ा रहा है कि अब मैं कभी इधर-उधर नहीं जाऊंगा. इससे बेहतर किसी का मर जाना होता.
ओह ! नीतीश कुमार. पोरस नहीं, तो हेमंत सोरेन से तो कुछ सीखते. बिहारी अस्मिता की ऐसी मिटटी पलीद किसी ने नहीं की होगी, जैसी नीतीश ने की है.
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