क्या आप भदंत संघरत्न मानके को जानते हैं?

बुद्ध बुद्धि, साहस और करूणा के प्रतीक भी हैं

सुशान्त कुमार

 

बुद्ध का अर्थ है मानवता के प्रतीक। इस अर्थ में विश्व में मानव जाति और प्रकृति के लिए करूणा, शील और प्रज्ञा शामिल है। बुद्ध धम्म ने सिखाया है कि मनुष्यों के बीच नैतिक और आपसी भाईचारा होना चाहिए और उन्हें शांति से रहना चाहिए। अगर बेहतर ढंग से परिभाषित किया जाए तो बुद्ध बुद्धि, साहस और करूणा के प्रतीक भी हैं। उन्होंने ईश्वर को नकारा है। इसी के प्रतीक स्वरूप छत्तीसगढ़ के डोंगरगढ़ में प्रज्ञागिरी की स्थापना की गई।

प्रज्ञागिरी लगभग 1,000 फीट (300 मीटर) की पहाड़ी की चोटी पर स्थित है। यहां एक मुक्त बौद्ध विहार है जिसमें उत्तर दिशा की ओर एक बड़ी विशाल ध्यान की मुद्रा में बुद्ध की प्रतिमा है। उनका मुख - मुद्रा डोंगरगढ़ रेलवे स्टेशन से खड़े होकर भी दर्शन किया जा सकता है। पहाड़ पर चढऩे के लिए लगभग 225 सीढिय़ाँ हैं। संघ के अनुसार प्रज्ञागिरि पर्वत समुद्र तल से 200 मीटर ऊपर अर्थात 30 फीट ऊंचे मंच पर स्थित है। साल 1991 से पञ्ञा मेत्ता संघ की ओर से प्रज्ञागिरी में धम्म कार्य जारी है। 

यहां पहला अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन 6 फरवरी 1992 को भदंत संघरत्न मानके द्वारा आयोजित किया गया था। जानकारों का कहना है कि पञ्ञा मेत्ता संघ द्वारा अब तक 31 अंतरराष्ट्रीय बौद्ध सम्मेलन आयोजित किये जा चुके हैं। 

इस सम्मेलन में भारत के अलावा जापान, थाईलैंड, श्रीलंका, तिब्बत, कोरिया, ताइवान और बौद्ध देशों से बौद्ध धम्मगुरु, उपासक-उपासिकाएं और स्वयंप्रेरित अनुयायी भाग लेते हैं और विश्व शांति और भाईचारे का संदेश देते हैं। 

उनके जीवन पर बौद्ध धम्म के जानकार कन्हैयालाल खोब्रागढ़ कहते हैं कि भदंत संघरत्न मानके का जन्म नागपुर में हुआ है। साधारण श्रमिक परिवार में जन्मे इनके पिता सच्चिदानंद मानके और माता सीताबाई मानके के वह एकमात्र संतान हैं। वह अपने गुरू होरिसावा जो तेंदई सम्प्रदाय के हैं के सानिध्य में नौ वर्ष की आयु में बौद्ध धर्म का अध्ययन करने के लिए जापान गए। बाल्यकाल से ही मानके जापान में प्रकांड बौद्ध विद्वान होरिसावा के सानिध्य में मार्गदर्शन में ज्ञान की प्राप्ति की।

वहां उन्होंने अपनी स्नातक और 4 साल की बौद्ध धम्म साधना (ध्यान) पूरी की। जिस प्रकार सम्राट अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा को बौद्ध धम्म का प्रचार करने हेतु संघ में दान देकर धर्म दायाद का दर्जा प्राप्त किया वही दर्जा मानके के माता पिता को भी जाता है। उसके बाद उन्होंने धम्म, सामाजिक और चिकित्सा के माध्यम से लोगों की मदद करके अपना सामाजिक कार्य शुरू किया। 

1985 में भदंत ने जापान में अपनी पढ़ाई पूरी की और भारत वापस आ गए। उन्होंने पञ्ञा मेत्ता संघ (जिसे पहले इंडो जापान बुद्धिस्ट फ्रेंड्स एसोसिएशन के नाम से जाना जाता था) की स्थापना की और पूरे देश में लोगों की मदद करना शुरू किया। उनकी संस्था पौनी (भंडारा), नागपुर, डोंगरगढ़ (छत्तीसगढ़) और गुजरात और चेन्नई में काम कर रही है। संघ की शाखाएं अन्य देशों में भी हैं। जापानियों के बीच उनकी खासा प्रसिद्धि है। 

भंते कुछ लोगों को आत्मनिर्भर बनाने में अपने योगदान से बहुत संतुष्ट महसूस करते हैं, वे शिक्षा के साथ लोगों की स्वतंत्रता के पक्षधर हैं। भंते हमेशा मानवता में विश्वास करते हैं ना कि जाति, धर्म, नस्ल, वर्ग में। 

भदंत मानके हमेशा कहते हैं कि मदद और शिक्षा बौद्ध धम्म का मुख्य उद्देश्य है। इन विचारों के कारण स्थानीय लोग बौद्ध धम्म की ओर मुड़े। उनका कहना है कि सभी लोगों को इन विचारों का पालन करना चाहिए और इस तरह हम बोधिसत्व डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर के ‘प्रबुद्ध भारत’ के सपने को साकार कर सकते हैं। ये सभी विचार बौद्ध धम्म की ओर जाने के मार्ग हैं। आत्मज्ञान, करुणा और दान ये बुद्ध धम्म के बड़े विचार हैं। 

उनका दर्शन है कि क्रोध, मोह, अज्ञान और सांसारिकता ये सभी विचार मनुष्य के मन और आत्मा में रहते हैं। आत्मज्ञान प्राप्त करें और मनुष्य के प्रति प्रेम और करुणा व्यक्त करें। सभी प्रकार की आसक्ति से दूर रहें और अपने अंदर दान की भावना पैदा करें, यही बुद्ध धम्म का मूलमंत्र है।

पञ्ञा मेत्ता एसोसिएशन 1982 से बुद्ध के इन मुख्य विचारों पर काम करता है। पञ्ञा मेत्ता एसोसिएशन अलग-अलग रूपों में काम करता है लेकिन मुख्य उद्देश्य बुद्ध धम्म विचार (उपदेश) को स्वीकार करना और सफल जीवन जीना है। ये विचार केवल लोगों के लिए नहीं हैं, ये सभी प्रकार के मनुष्य, पशु-पक्षी और हर कोई को मदद करता है और दान देता है। एसोसिएशन हमेशा कहता है कि लोग स्वार्थ मोह से दूर रहें। बरक्स उनके शिष्य इससे अछूते नहीं रह पाए।

बौद्ध धम्म के जानकार कन्हैयालाल खोब्रागढ़े कहते हैं कि बाह्य बौद्ध देशों से विद्वान बौद्ध भिक्षुओं को डोंगरगढ़ के इस प्रज्ञागिरी तीर्थ में लाने का श्रेय पूज्यनीय भंते मानके को जाता है। इस बौद्ध तीर्थ के कारण डोंगरगढ़ जैसे छोटे से स्थान ने भी अपनी विश्व स्तर पर पहचान बना ली है।

उनकी प्रसिद्धि के साथ विवाद की प्रधानता भी रही। प्रज्ञागिरी के निर्माण में शुरूआत से ही भदंत मानके का विरोध होना शुरू हो गया था। विशेषकर इनके विवाहित होने को लेकर भारत में काफी मतभेद हैं। खोब्रागढ़े ने बताया कि शैलेष डोंगरे, विनोद खांडेकर और अधिवक्ता नरेन्द्र बंसोड़ ने उनके खिलाफ विरोध आयोजन भी किया। उन्होंने यह भी बताया कि विवाद के समय जिन लोगों ने भदंत मानके का समर्थन किया अधिवक्ता नरेन्द्र ने उन्हें ‘हरामी बौद्धों’ की संज्ञा दी और पर्चा प्रकाशित किया।

कालांतर में देखे तो भदंत मानके का उद्देश्य भले ही इस सम्मेलन को विश्व स्तर का करना रहा हो, लेकिन हाल में यह छत्तीसगढ़ी मंडई - मेला जैसे बन कर रह गया है। खबर यह भी है कि एक विरोधी गुट ने यहां अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया है। सरकार प्रसाद योजना जैसे कई योजनाओं को लागू करने के लिए करोड़ों रुपए व्यय कर रही है लेकिन इस अंतरराष्ट्रीय तीर्थ की स्थिति दयनीय बनी हुई है।

कुछ लोग यहां विशाल बुद्ध प्रतिमा का दर्शन और पूजा पाठ करने आते हैं। कुछ अध्यात्म से इसे जोड़ते हैं। कुछ मेला देखने आते हैं। कुछ घूमने। कुछ मुफ्त में भोजन लेने और विद्वान लोग यहां इन सभी दृश्यों को देखते हैं और स्टॉल में लगे कुछ जरूरी पुस्तकों की खरीददारी के लिए आते हैं। इन सब के बीच की राजनीति भयावह है।

एक बड़ी चीज बुद्ध धम्म धीरे धीरे विरोधी धर्म के आगोश में समाता जा रहा है। 


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  • 05/03/2024 Pankaj shyamkunwar

    गुरु है मेरे आचार्य है मेरे

    Reply on 22/03/2024
  • 05/03/2024 Pankaj shyamkunwar

    यह जो लेख है, मेरे लिए वह बहुत ही महत्वपूर्ण है क्यों कि भदंत जी मेरे गुरु है और सब कुछ है। मैं समय आने पर उनके लिए अपने प्राण भी न्योछावर कर सकता हूं क्यों कि उन्होंने मुझे बुद्ध का मार्ग दिया बाबा साहब क्या है समझाया।उनकी मैं जितनी प्रसंशा करूं उतना ही कम है।

    Reply on 22/03/2024