वह कैंसर से जंग जीत गई
ये पत्र भी रिकवर होने के पीछे एक बड़ा मोटिवेशन रहा
रश्मि रविजाकैंसर जैसी बीमारियों के कारण मैंने अपने कई खासमशास लोगों को खोया है. यही नहीं कई उम्दा लेखकों ने इस विषय पर कलम चलाई है। हाल ही में प्रसिद्ध लेखिका रश्मि रविजा का यह फेसबुक पोस्ट पढ़ा है। यह लेख सभी कैंसर पीडि़तों के लिए संबल साबित होगा. शेष उनके शब्दों में कि -‘लिखते लिखते इतना लंबा हो गया, जब फ्रेंड्स से आशंका जताई तो उन्होंने भेजने के लिए कहा और बताया कि वो एक सांस में पढ़ गईं. मुझे धमकाया भी, ‘कुछ भी कट किया देखना. ये नॉर्मल पोस्ट थोड़े ही है, लंबा होना ही है. ‘देख लो, भई सारा वैसे ही डाल दिया’.

आज अपने जन्मदिन की पूर्व संध्या पर सोचा आप लोगों को एक चिट्ठी लिखूँ. अपनी हर हंसी - खुशी, सुख-दुख, यहाँ शेयर किया है तो जीवन की इस बड़ी घटना से भी आप सबको अवगत कराना फर्ज है. मुझे इसी वर्ष अप्रैल में कैंसर डायग्नोज हुआ. पर आप सब चिंता न करें, अब इलाज पूरा हो गया है और मैं इस बीमारी से बाहर निकल आई हूँ. डॉक्टर की अनुमति से वाक, दोस्तों से मिलना जुलना सब शुरू हो गयाा है. एहतियात तो अब जिंदगी भर रखना है और उस पर अमल भी कर रही हूँ. धीरे धीरे ही सामान्य जिंदगी की तरफ कदम बढ़ा रही हूँ.
वैसे भी यहाँ लिखती ही और करीबियों का आग्रह भी था कि विस्तार से अपने अनुभव लिखूँ क्यूंकि इस बीमारी का नाम ही इतना बड़ा है कि सुनकर लोग बेतरह डर जाते हैं. पर अब मेडिकल साइंस ने इतनी तरक्की कर ली है कि बिना ज्यादा तकलीफ झेले, लोग इससे निकल भी आते हैं. वैसे कई तरह का कैंसर होता है, सबके शरीर पर इसका प्रभाव, दवाइयों का असर सब अलग तरीके से होता है. हर केस दूसरे से अलग होता है. फिर भी अगर मेरे लिखे से अपने दूर-दराज के सम्बन्धियों, परिचितों,दोस्तों के लिए हौसला मिले, उम्मीद बंधे, निराशा न घेरे तो लिखना सार्थक होगा.
आप सब सोच रहे होंगे, इन सबके बजाय क्या...कैसे...कब...क्यूँ नहीं लिख रही सब लिखती हूँ, थोड़ा धैर्य!
10 अप्रैल 2023 तक मैं सामान्य ही थी. 10 को एक साहित्यिक कार्यक्रम चौपाल में गई थी. सीढियाँ चढकर मेट्रो से गई, चार घंटे का संगीतमय कार्यक्रम अटेंड कर रात दस बजे तक घर लौटी. अगला दिन भी सामान्य तरीके से ही गुजरा. शाम को मैं जब पार्क में वाक के लिए गई तो मैं चलते हुए हांफने लगी. थोड़ी देर बैठकर दुबारा चली फिर से हांफने लगी. फ्रेंड्स ने भी कहा, ‘चलो अभी बैठते हैं,पर तुम डॉक्टर को दिखा लेना.’
दो घंटे गप-शप कर जब हम लौटने लगे तो मैंने सोचा घर जाने की बजाय डॉक्टर के पास ही चली जाती हूँ. (बाद में सबने आश्चर्य किया कि इतनी सी बात पर आप सीधा डॉक्टर के पास चली गईं. पर यह मेरे लिए बहुत ही असामान्य सी बात थी. दस हजार कदम चलने वाली पाँच सौ कदम में हांफने लगे, ये बड़ा अजीब था) डॉक्टर को लगा हृदय रोग की समस्या है. दो दिनों तक हृदय से सम्बन्धित सारे टेस्ट हुए पर सब सही था. (दिल तो हमेशा बहुत सम्भाल कर रखा है न, उसे कैसे कुछ होता) उन्होंने चेस्ट स्पेशलिस्ट के पास रेफर किया. और इस डॉक्टर ने तुरंत डायग्नोज कर लिया कि फेफड़े में पानी भरा हुआ है.
यह पानी ऊपर तक आकर हृदय पर. दबाव डाल रहा था, इसीलिए हांफने की शिकायत हो रही थी. पानी निकाल कर टेस्ट के लिए भेजा गया. और पता चला, उस पानी में कैंसर के सेल्स विद्यमान हैं. 11 अप्रैल की शाम को शिकायत शुरू हुई और 17 अप्रैल को रिपोर्ट आ गई.
अगले ही दिन बड़ा बेटा अंकुर और बहू स्वरुषी बैंगलोर से आ गए. दो दिनों बाद छोटा बेटा अपूर्व डबलिन से आ गया और फिर बच्चों ने सारी भाग-दौड़ की कमान अपने हाथों में ले ली. नवनीत भी निश्चिन्त हो गए. अलग-अलग डॉक्टर्स के ओपिनियन लेना, पेपर्स पढना, अपॉइंटमेंट लेना सब बच्चों के मत्थे. मैं पहले की तरह मूवी - सीरीज देखती रही और फेसबुक पर भ्रमण करती रही, मैंने 18, 21, 23, 24... अप्रैल और उसके बाद भी लगातार कुछ न कुछ पोस्ट किया है. आप सबका भी शुक्रिया आप सबसे हंसते बतियाते ये कठिन समय गुजर गया.
पहले लंग्स कैंसर का ही शक था फिर कुछ टेस्ट के बाद पता चला, कैंसर का ओरिजिन ओवरी है. डॉक्टर ने बिलकुल ठेठ हिंदी भाषा में समझाया, ‘ये सेल पानी बहुत बनाता है, इसलिए हमलोग जल्दी कीमो शुरू करेंगे’. ओवरी से जनरेट होकर पहले पानी पेट में गया और फिर लंग्स में चला गया. ओवरियन कैंसर था पर मुझे कभी कोई गायनिक प्रॉब्लम नहीं हुई थी.
अलग अलग तरह की बीमारियाँ होती हैं. इतना सारा पानी बदन में लेकर मैं निश्चिन्त घूम रही थी और सोचती रहती, वॉक-योगा के बाद भी वजन टस से मस क्यूँ नहीं होता. कुछ बीमारियाँ इतने दबे पाँव आती हैं कि जरा भी आभास नहीं होता और फिर धड़ाक से किवाड़ खोल जिंदगी में सीधा दाखिल हो जातीं हैं.
27 अप्रैल को मेरा पहला कीमो हुआ. 21 दिनों के अंतराल पर तीन कीमो हुए .इसके बाद 6 जुलाई को ‘हिंदुजा हॉस्पिटल’ में ऑपरेशन हुआ. वह भी नौ घंटे का. लंग्स में पानी मिला था, इसलिए डॉक्टर्स को डर था कि शायद लंग्स को भी क्षति पहुंची हो, इसलिए पहले कैमरा डालकर लंग्स की पड़ताल की गई, सौभाग्यवश वहाँ कुछ डैमेज नहीं हुआ था, फिर पेट का ऑपरेशन हुआ और इसके बाद एचआईपीईसी दिया गया. यह नई तकनीक है. ऑपरेशन के बाद अंदरूनी अंगों को कीमो के सॉल्यूशन से वाश किया जाता है. समय लगना ही था.
इतने बड़े ऑपरेशन के एक घंटे बाद ही मुझे होश आ गया और आठवें दिन मैं घर आ गई. होश आने के बाद तुरंत बात नहीं करनी थी. नर्स ने मुझे कागज पेन लाकर दिया और घर में आजतक सब चिढाते हैं. मैंने लिख लिखकर ही दो पन्ने भरकर बात कर ली. और बाकायदा क्वेश्चन मार्क लगा लगा कर, सबकुछ पूछ डाला... सबने दिन में खाना खाया या नहीं,यह भी आप सबको तो लम्बी पोस्ट पढऩे की आदत है, घरवालों को नहीं.
ऑपरेशन के बाद तीन कीमो और हुए और अब सिर्फ मेंटेनेस (डॉक्टर के शब्दों में) जारी है. इतने विस्तार से लिखने का प्रयोजन यही है कि अपने किसी अजीज के साथ ऐसी कोई अनहोनी हो तो घबराएं नहीं. इतना कुछ होने के बाद भी इंसान आसानी से निकल आता है और सामान्य रूटीन शुरू कर सकता है.
बीमारी के विषय में पता चलते ही मेरी पहली प्रतिक्रिया थी, ‘थैंक गॉड, बेटे की शादी अच्छे से हो गई.’ एक महीने पहले ही अंकुर की शादी हुई थी. अगर उस वक्त या उससे पहले पता चलता तो मैं कल्पना भी नहीं कर पाती कि क्या होता. मैंने खूब मन से शादी की तैयारियां कीं,बहुत एन्जॉय किया. बच्चे-रिश्तेदार सब अपनी जगह चले गए, सब कुछ निबट जाने के बाद ये बात पता चली. मैंने बीमारी के बारे में ज्यादा सोचा नहीं, ना पॉजिटिव, न नेगेटिव...
बल्कि कुछ भी सोचा ही नहीं. बस जो भी डॉक्टर कहते गए, करती गई और समानांतर में अपनी सामान्य दिनचर्या भी जारी रखी. डॉक्टर भी अच्छे मिले हैं, हमेशा कहते रहे...लीड अ नार्मल लाइफ पता नहीं बच्चों को साथ देखकर उन्हें क्या आभास हुआ. उन्होंने बच्चों से कहा, ‘इनकी एक्स्ट्रा केयर मत किया कीजिये.’ मैंने बाद में इस जुमले का खूब इस्तेमाल किया. डॉक्टर ने ये भी कहा, ‘जहाँ तक हो सके इन्हें नॉर्मल रहने दें, इन्हें पेशेंट की तरह बिल्कुल ट्रीट मत कीजिये.’
एक बात शेयर करती हूँ, मैं ऊपर जाने के लिए भी बिल्कुल तैयार थी. बेटों के भविष्य की दिशा तय है, पति अपने काम में व्यस्त हैं, चली भी गई तो कोई बात नहीं पर एक ख्याल आया. मेरे जाने के बाद कपड़े भले ही जरूरतमंदों को दे दें, मेरे कॉस्मेटिक्स तो ये लोग फेंक ही देंगे. उसमें एक बारह हजार का परफ्यूम भी था जो बेटा विदेश से लाया था. मुझे लगा इसकी वैल्यू तो कोई नहीं समझेगा, मैं लगाकर खत्म कर देती हूँ और मैं चेकअप के लिए, कीमो लेने, हर जगह परफ्यूम लगा कर जाती. अब मैं तो यही हूँ पर परफ्यूम खत्म हो गया.
पढऩे-लिखने की रूचि ने भी सामान्य बने रहने में बहुत मदद की. रिपोर्ट आने के दो चार दिनों बाद ही मेरी एक फ्रेंड की शादी की पच्चीसवीं सालगिरह का समारोह था. मुझे सभी दोस्तों की तरफ से कुछ बोलना था.मैंने उस वक्त तक उन्हें अपनी बीमारी के विषय में नहीं बताया था ताकि उनकी खुशी में खलल न पड़े. उन्हें सिर्फ हांफने वाली बात मालूम थी. एक ने कहा, ‘तुम कुछ लिख कर दे दो, हम पढ़ देंगे’. डॉक्टर के केबिन के बाहर बैठी मैंने कुछ तुकबन्दियाँ जोड़ कर भेज दीं.
रिपोर्ट आने के कुछ ही घंटों बाद एक मैसेज आया, विविध भारती से कहानी की मांग थी. अगले दिन कहीं और से एक आलेख की डिमांड थी. पहले तो मैंने टाल देने की सोची,फिर सोचा आखिर मैं खाली ही तो बैठी हूँ, लिख कर क्यूँ नहीं भेज देती . विविध भारती से कहानी के रेकॉर्डिंग के लिए भी मैसेज आ गया. डॉक्टर ने आश्वस्त किया, ‘आप बिलकुल रेकॉर्डिंग के लिए जा सकती हैं, रेकॉर्डिंग रूम में तो अकेले ही रहना होता है,बेहिचक जाइए’ पहले कीमो के चार दिन बाद ही मैंने विविध भारती जाकर कहानी रेकॉर्ड की. आप सबने भी तस्वीरें देखीं थीं.
पब्लिक प्लेस पर जाने और बाहर का कुछ भी खाने की मनाही थी क्योंकि कीमो के बाद इम्यूनिटी कम हो जाती है इसलिए इन्फेक्शन का खतरा रहता है. इसका मैंने अक्षरश: पालन किया. मैंने घर में रहकर पेंटिंग शुरू कर दी. वॉट्स एप्प स्टेटस में जब पेंटिंग्स की फोटो लगाई तो एक मित्र का मैसेज आया कि वे एक पेंटिंग खरीदना चाहते हैं. जब मैंने ये बात अपनी फ्रेंड्स को बताई तो उन्हें लगा ,वे भी फरमाईश कर सकती हैं और फिर मैं एक पेंटिंग कम्प्लीट कर ग्रुप में फोटो डालती और तुरंत मैसेज आ जाता, ये पेंटिंग मुझे चाहिए.
इस दौरान मैंने आठ पेंटिंग बनाई और सब दोस्तों को दे दिए. पैसे नहीं लिए (पर अब लूंगी, फरमाईश करने से पहले सोच लीजियेगा) मेरा मन लगा रहा, कुछ करने को मिला, यही बड़ी बात थी. फिल्में-सिरीज भी खूब देखीं. कीमो चढ़ते हुए मैंने फिल्म ‘जिंदगी तमाशा’ देखी. घर आकर उसके विषय में लिखकर फेसबुक पर पोस्ट किया और सो गई. सुबह देखा,पोस्ट वायरल हो गई थी.पाँच लाख से ऊपर लोगों ने पढ़ा था, पाँच सौ के करीब शेयर हुए थे. इन सारी एक्टिविटी ने सामान्य बने रहने में बहुत मदद की.
इन सबके साथ बच्चे भी चौबीसों घंटे साथ थे. इन्हें वर्क फ्रॉम होम मिल गया था. बहू स्वरूषी अभी अभी परिवार में शामिल हुई थी पर उसने बहुत साथ दिया. तीनों बच्चे सर जोड़े डॉक्टर और बीमारी के विषय में रिसर्च करते रहते. पर मुझसे बीमारी की कोई बात नहीं करते, हमारा हंसी मजाक चलता रहता. मैंने भी इस दौरान बिलकुल अनपढ़ गंवार की तरह बिहेव किया. गूगल पर एक शब्द सर्च नहीं करती, रिपोर्ट्स भी नहीं देखती थी.
बस डॉक्टर और मित्र जो सलाह देते, वही करती. खाने पीने में डॉक्टर ने कुछ भी मना नहीं किया था पर मैंने अपनी मर्जी से शक्कर, बिस्किट, ब्रेड, तली भुनी चीजें सभी से परहेज कर लिया था. प्रोटीन के लिए बच्चों ने पनीर-टोफू बहुत खिलाया, रोजाना फल, गाजर-बीटरूट और व्हीटग्रास का जूस भी मुझे घोंटवाया जाता.बच्चों ने अपने बचपन का भरपूर बदला ले लिया, खाने के लिए, टहलने के लिए एकदम सर पर सवार रहते. (एक घंटा बिल्डिंग की टेरेस पर ,बारिश के दिनों में घर के अंदर भी टहलती थी.) मैंने बच्चों को दरोगा जी ही नाम दे दिया था. मुझे आँखें दिखाते, आखिर इलाज पूरा हो जाने के बाद ही अपने स्थान को रवाना हुए.
मानसिक स्थिति मेरी ठीकठाक रही, डिप्रेशन में नहीं गई, कभी दुखी नहीं हुई, व्हाई मी वाला ख्याल भी मुझे कभी नहीं आया. शारीरिक स्तर पर भी ज्यादा परेशानी नहीं हुई. और इसके लिए मेडिकल साइंस को साष्टांग दंडवत इतने प्रयोग हो रहे हैं, नई नई दवाइयां ईजाद हो रहीं हैं कि मरीज का कष्ट कम से कमतर किया जा रहा है. कीमो के कष्ट-साइड इफ्फेक्ट्स के विषय में बहुत सुना था .पर अब कीमो की दवा से पहले एक छोटी बोतल प्रिवेंटिव मेडिसिन की चढ़ाई जाती है. इसमें दर्द-उल्टी-चक्कर-बुखार की दवा होती है. इसलिए मुझे कीमो के बाद तीन दिनों तक सिर्फ पैरों में हल्का दर्द रहता था, उसके बाद वह भी नहीं. भूख भी लगती रही, खाने का स्वाद भी बना रहा.
हाँ बालों पर जरूर असर होता है.और इस ट्रामा से बचने के लिए जिस दिन पहली बार थोड़ेे से बाल गिरे, मैंने अर्बन क्लैप से एक हेयर ड्रेसर को बुलाकर सारे बाल उतरवा लिए. (ये अलग बात है कि लेडी हेयर ड्रेसर थी, उसके पास ट्रिमर ही नहीं था) अपूर्व भागकर खरीदकर ले आया. स्वरुषी ने पहले ही अमेजन से कुछ कीमो कैप्स मंगवा दिए थे. मैं मानसिक रूप से बिलकुल तैयार थी,इसलिए शायद मुझपर ज्यादा असर नहीं हुआ. हालांकि इतनी स्ट्रांग भी नहीं हूँ, कई दिनों तक मैंने खुद को भी आईने में नहीं देखा था. बाथरूम में भी मिरर के ऊपर तौलिया डालकर रखती पर एक दिन अचानक सर उठाया और शावर में मेरा प्रतिबिम्ब दिखा, एक पल को लगा ये लामा जैसा दिखता हुआ कौन है. इसके बाद खुद से सहज हो गई.
ऑपरेशन के बाद भी रिकवर होने में ज्यादा वक्त नहीं लगा. घर आने के तीसरे दिन से मैंने पेंटिंग शुरू कर दी थी. डॉक्टर का कहना था, ‘जितना एक्टिव रहियेगा रिकवरी उतनी जल्दी होगी’. मेरा छोटा बेटा अपूर्व पीएचडी कर रहा है.मेरी बीमारी के दौरान उसने डॉक्टर्स को बहुत करीब से देखा और इतना प्रभावित हुआ कि कहता है मैं कभी अपने नाम के आगे डॉक्टर नहीं लगाऊंगा, डॉक्टर कहलाने के असली हकदार सिर्फ ये लोग ही हैं.
डॉक्टर ने पहली बार में ही एक बात जोर देकर कही थी कि निगेटिव लोगों से दूर रहियेगा. जो भी दु:ख जताए, निराशावादी बातें करे,उनका फोन मत उठाया कीजिये. मैंने फोन करके किसी को भी अपनी बीमारी के विषय में नहीं बताया. जिनका फोन आया उन्हें जरूर बताया. (हाल में कुछ दोस्तों ने शिकायत की कि क्यूँ नहीं बताया,उनके लिए यही जबाब है...‘फोन करते रहा करो’) जिन मित्रों से नियमित बातचीत होती थी और करीबी रिश्तेदारों को ही पता था.
‘आप हंसे जग रोये’ वाली बात सच होती दिखी. ऐसी ‘करनी’ तो नहीं की पर कॉलोनी वाली फ्रेंड्स, कुछ लेखिका सहेलियाँ भी सुनते ही फोन पर ही रोने लगीं. पहली बार सुनकर एक झटका तो लगता ही है. हंसते हुए उन्हें समझाया. ग्रुप में बकायदा वोईस नोट भेजनी पड़ी कि मैं जरा भी दुखी और निराश नहीं हूँ, मुझसे नॉर्मल रूप से ही बात किया करो, दोस्तों का, बड़ी दीदियों का बहुत सहारा रहा. सब नियमित फोन करते रहे, हौसला बढाते रहे. सबके मुँह पर एक ही बात थी,‘तुम जल्दी निकल आओगी’. एक फ्रेंड ने जोर देकर कहा था, ‘देखना रश्मि छह महीने में ठीक होकर हमारे साथ वाक के लिए आने लगेगी. (उनका विश्वास कायम रहा)
कीमो के सायकल खत्म होते ही सब मिलने भी आये. एकाध अलग अनुभव भी हुए, एक रिश्तेदार ने बहुत आह भरकर कहा, ‘चलो... एक बेटे की शादी तो देख ली, मैंने तपाक से कहा, ‘दूसरे की भी देखूंगी’ मेरे लिए लगातार प्रार्थनायें होती रहीं. दोस्तों ने अपने प्रेयर ग्रुप में मेरा नाम भेजा. कुछ दोस्तों ने तो मन्नत भी मान रखी है, सुदूर कर्नाटक के किसी कस्बे के देवताओं की, मैंने उन देवताओं का नाम भी नहीं सुना पर उन सबका आशीर्वाद मुझे मिला, बिल्डिंग में जिन पुरुषों से कभी बात भी नहीं हुई, वे भी अब रोक कर बातें करते हैं और बताते हैं कि मेरे लिए प्रार्थना कर रहे थे. बच्चों के फ्रेंड्स अलग अलग देशों के हैं. उन सबकी दुआएं भी मिलती रहीं.
इटली व अमेरिका से एक लडक़ी ने और गिलगिट पाकिस्तान से एक लडक़े ने अपनी मांओं की फोटो भेजी कि इसी बीमारी से गुजर कर वे बाहर निकल आईं हैं। सबकी दुआओं का ही असर है कि मैं इस झंझावात से सही सलामत निकल आई. अप्रत्यक्ष रूप से आप सबकी शुभकामनाएं भी हमेशा साथ थीं. कभी भी इस प्रेम से उऋण नहीं हो पाऊंगी. सबका बहुत बहुत आभार!
मेरी बीमारी की बात सुनकर बहुतों को पहला ख्याल यही आता है, ‘इतना वाक करती थी, योग करती थी, खान-पान भी सही था, फिर भी ये बीमारी कैसे हो गई? मुझे लगता है वाक और योग बीमारी तो नहीं रोक सकती पर जल्दी उबरने में जरूर मदद कर सकती है. कम कष्ट होने और जल्दी रिकवर होने में इसने पूरा सहयोग दिया. एक फ्रेंड ने कहा, ‘नियमित वाक और योग से तुम्हारे दूसरे अंग इतने स्वस्थ थे कि उनपर असर नहीं पड़ा. क्या पता ये भी सही हो.
अंत मे दो जरूरी बातें -
पचास की उम्र के बाद पूरा बॉडी चेक अप जरूर करवा लें. ईश्वर करे कोई बीमारी न निकले पर अगर कोई बीमारी हो तो जल्दी पता चल जाएगा क्योंकि मेरी इस बीमारी की तरह कुछ बीमारियों के कोई लक्षण नहीं होते.
दूसरी बात
इंश्योरेंस जरूर करवा कर रखें. यह मरीज के परिजनों को राहत ही नहीं देता, मरीज को ठीक होने में भी बहुत मदद करता है. अगर मेरा इंश्योरेंस नहीं रहता तो मैं गिल्ट के बोझ तले ही दब जाती कि मेरे ऊपर इतने पैसे खर्च हो रहे. फिर इतनी जल्दी और खुश खुश ठीक नहीं हो पाती.
ये पत्र भी रिकवर होने के पीछे एक बड़ा मोटिवेशन रहा क्योंकि मैंने सोच रखा था, ठीक होने के बाद चिट्ठी लिखूंगी और इसके लिये मुझे जल्द से जल्द ठीक होना था.
आप सब जन्मदिन की शुभकामनाएं देंगे ही. अब तो इनकी ज्यादा जरूरत है. आप सभी का अग्रिम धन्यवाद!
अपना खूब ख्याल रखें
आप सबकी
रश्मि रविजा
पुनश्च - ये पुनश्च: ना हो तो पत्र का फॉरमेट कैसे पूरा होगा, लिखते लिखते इतना लंबा हो गया, जब फ्रेंड्स से आशंका जताई तो उन्होंने भेजने के लिए कहा और बताया कि वो एक सांस में पढ़ गईं। मुझे धमकाया भी, ‘कुछ भी कट किया देखना। ये नॉर्मल पोस्ट थोड़े ही है, लंबा होना ही है। ‘देख लो, भई सारा वैसे ही डाल दिया.
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