विवादास्पद पुस्तक के लेखक नंद कुमार बघेल का देहावसान
नंद कुमार राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक थे
सुशान्त कुमारछत्तीसगढ़ की राजनीति में विवादों में रहने वाले राजनेता नंद कुमार बघेल का लंबी बीमारी के बाद आज निधन हो गया। वे राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक थे। कई लोगों को उनकी विचारों से असहमति हो सकती है। जातिवाद और धर्म की राजनीति को लेकर विवादों में रहने वाले नंदकुमार बघेल पुत्र के मंत्री रहते हुए तथा पुत्र के मुख्यमंत्री रहते हुए दो बार जेल गए।

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि जातिवाद और हिन्दू धर्म की राजनीति को लेकर वह कांग्रेस पार्टी को कभी भी नुकसान नहीं पहुंचाया। बल्कि वह हमेशा अपने पुत्र पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के हाथ मजबूत करते दिखाई दिए।
पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने सोशल मीडिया के माध्यम से अवगत कराया है कि -‘दु:ख के साथ सूचित करना पड़ रहा है कि बाबूजी श्री नंद कुमार बघेल जी का आज सुबह निधन हो गया है। अभी पार्थिव शरीर को पाटन सदन में रखा गया है। मेरी छोटी बहन के विदेश से लौटने के बाद अंतिम संस्कार 10 जनवरी को हमारे गृह ग्राम कुरुदडीह में होगा।’
विवादों में रहने वाले नंदकुमार दुर्ग जिले के कुरुदडीह गांव के मूल निवासी थे। नंद कुमार बघेल ने अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग समुदायों को कांग्रेस के रास्ते सत्ता में स्थान दिलाने जुटे रहे। इस दौरान साल 2001 में नंद कुमार ने ‘ब्राह्मण कुमार रावण को मत मारो’ नामक पुस्तक लिखी थी। इस किताब के विरोध के कारण पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी की सरकार ने पुस्तक को प्रतिबंधित किया था। जबकि पुस्तक पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी से प्रभावित होकर लिखा गया था।
इस पुस्तक के रूप में नंद कुमार ने वाल्मीकि रामायण, पेरियार की सच्ची रामायण, रामचरित मानस और मनुस्मृति के मिश्रण का एक नया संस्करण लोगों तक पहुंचाया था। बघेल ने किताब पर लगे प्रतिबंध के खिलाफ छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय में अपील भी की। बताया जाता है कि 17 साल की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद अदालत ने 2017 में नंदुकमार की याचिका खारिज कर दी थी।
खबर यह भी है कि उनके बहाने कई ब्राह्मणों को कांग्रेस के कार्यकाल में अपना सिंहासन छोडऩा पड़ा था और उनके बहाने कांग्रेस को ब्राह्मणों की नाराजगी का सामना करना पड़ा था।
बताया यह भी जाता है कि नंद कुमार ने 1970 के दशक में बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। नंद कुमार ने 2018 में विधानसभा चुनाव से पहले कांग्रेस नेतृत्व को पत्र लिखा था। इस पत्र में उन्होंने पार्टी के करीब 85 प्रतिशत टिकट एससी-एसटी और ओबीसी उम्मीदवारों को देने का आग्रह किया था। बताया जाता है कि नंदकुमार ने ब्राह्मण, बनिया और ठाकुरों को टिकट देने से मना किया था।
नंद कुमार बघेल ने कांग्रेस नेतृत्व को कहा था कि चुनाव जीतने के लिए पार्टी को ऐसा करना पड़ेगा। खबर यह भी है कि भूपेश बघेल उस समय पीसीसी अध्यक्ष थे। आलोचना होने के बाद भूपेश बघेल ने कहा कि नंद कुमार कांग्रेस पार्टी के प्राथमिक सदस्य नहीं है। लिहाजा उनका वक्तव्य मायने नहीं रखता।
साल 2021 में लखनऊ में ब्राह्मणों को लेकर जब नंद कुमार बघेल ने बयान दिया था, तब रायपुर में नंद कुमार के खिलाफ पुलिस में शिकायत दर्ज की गई थी। जिस पर मुख्यमंत्री भूपेश ने शासन में रहते हुए नंदकुमार को 14 दिनों की न्यायिक हिरासत में जेल भेजा था।
धर्म को लेकर पिता पुत्र में मतभेद था। साल 2019 में जब नंद कुमार बघेल की पत्नी का निधन हो गया, तो वह बौद्ध धर्म के अनुसार उनका अंतिम संस्कार करना चाहते थे। लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री ने आपत्ति जताई। आखिरकार पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश ने मां का अंतिम संस्कार हिंदू मान्यताओं के अनुसार ही कराया। लेकिन दूसरी तरफ नंद कुमार बघेल ने राजिम में बौद्ध धर्म के मुताबिक संस्कार किए।
एक अन्य घटना में बताया जाता है कि जब आदिवासी क्षेत्रों में पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पूरे राज्य में राम वन गमन पथ का निर्माण करने का प्रयास कर रहे थे तो उनके खिलाफ उनके पिता नंद कुमार बघेल ने धमतरी जिला अंतर्गत तुमाखुर्द गांव में साल 2020 को राज्य सरकार द्वारा लगाये गये राम मंदिर के बोर्ड को गांववालों की सहायता से हटाकर बौद्ध विहार का बोर्ड लगवा दिया तथा बुढ़ादेव आर्युर्वेद चिकित्सा अनुसंधान केन्द्र का शिलान्यास किया।
राजनीतिक जानकारों के अनुसार पिता और पुत्र के बीच नंद कुमार बघेल की राजनीति विवादों में रही और लोगों का कहना है कि कांग्रेस को उनका कार्य मजबूती प्रदान करता रहा और बताया जाता है कि उनके ही प्रयासों का परिणाम है कि वह अपने पुत्र भूपेश बघेल को छत्तीसगढ़ के तीसरे मुख्यमंत्री के रूप में देख पाएं।
पूर्व मुख्यमंत्री के पूर्व राजनीतिक सलाहकार विनोद वर्मा ने नंद कुमार बघेल को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा है कि नंद कुमार बघेल जी का जाना दु:खद है। वे एक साहसी राजनीतिक-सामाजिक कार्यकर्ता और विचारक थे। उनके बहुत से विचारों से मैं सहमत नहीं हो सका पर उन्होंने चर्चा करने का रास्ता हमेशा खुला रखा। पिछले लगभग 20 बरसों से मैं उनसे सतत संपर्क में था। इस बीच उन्होंने कई बार अपने विचार बदले पर हर बार उनके विचारों में भारतीय दर्शन ही परिलक्षित होता रहा। हमने किसानों और समाज के पिछड़े वर्गों के एक सच्चे हितैषी को खो दिया है।
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