आदिवासी मुख्यमंत्री के साथ आदिवासी सलाहकार परिषद, आदिवासी राज का सपना बाकी?
जेलों में बंद आदिवासियों की रिहाई सुनिश्चित करें!
सुशान्त कुमारछत्तीसगढ़ प्रदेश बरसों से माओवादी समस्याओं से जूझ रहा है। अनुसूचित क्षेत्रों में 5वीं तथा 6वीं अनुसूचियों का परिपालन नहीं होने से आदिवासियों में असंतोष व्याप्त है। अधिसूचित क्षेत्रों को हजारों की संख्या में सुरक्षा बलों को भेज कर युद्धक्षेत्र में तब्दील कर दिया गया है। इन सिविल क्षेत्रों में दशकों से सुरक्षा बल आदिवासियों के जनजीवन के साथ छेड़छाड़ तथा बलात्कार कर रहे हैं। आंकड़ों की माने तो तीन हजार से भी ज्यादा आदिवासी जन सुरक्षा कानूनों सहित अन्य फर्जी मामलों में जेलों में सड़ रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के बहाने इस आदिवासी बाहुल्य राज्य में आज भी आदिवासी मुख्यमंत्री के साथ आदिवासी सलाहकार परिषद और आदिवासी हित पर आधारित राज का सपना अब भी अधूरा है। आदिवासी बाहुल्य छत्तीसगढ़ में भाजपा के सिर राज मुकूट के लिए आदिवसियों ने अपना जनादेश दिया है।
छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव के नतीजे बताते हैं कि राज्य में दलितों ने कांग्रेस पर ज्यादा भरोसा जताया है। अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए आरक्षित 10 सीटों में से कांग्रेस को छह और भाजपा को चार सीटें मिली हैं। वहीं, अनुसूचित जनजाति (एसटी) यानी आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित प्रदेश की 29 सीटों में भाजपा को 16, कांग्रेस 12 और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को एक सीट मिली है।
वर्ष 2018 के चुनाव में एसटी वर्ग की 29 में से दो सीटें ही भाजपा के पास थीं। बाकी 27 विधान सभा सीटों पर कांग्रेस का कब्जा था। इसी तरह एससी की 10 में सात पर कांग्रेस, दो पर भाजपा और एक पर बसपा के विधायक थे।
अंतागढ़ उपचुनाव को भाजपा ने आदर्श चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन कर खरीद लिया था। इस चुनाव में रुपए पानी की तरह बहा कर चुनाव जीता है। लेकिन इस बार के चुनाव में अनुसूचित जाति (एससी) वर्ग के लिए आरक्षित 10 सीटों में से कांग्रेस को छह और भाजपा को चार सीटें मिलीं। वहीं अनुसूचित जनजाति (एसटी) यानी आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित प्रदेश की 29 सीटों में भाजपा को 16 कांग्रेस 12 और गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को एक सीट मिली है।
विधानसभा चुनाव 2018 में कांग्रेस ने एसटी के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 26 सीटों पर और भाजपा ने तीन सीटों पर जीत हासिल की थी। बाद में उपचुनाव के बाद कांग्रेस के पास 27 सीटें हो गई है और भाजपा के पास दो सीटें ही बचीं थी। इसके पहले 2013 के चुनाव में 29 में से 18 सीटों पर जीत के बाद भी कांग्रेस सत्ता से दूर थी। जबकि भाजपा 11 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसके पहले वर्ष 2008 के चुनाव में भाजपा ने 29 सीटों में से 19 सीटों पर जीत हासिल कर सरकार बनाई थी। तब कांग्रेस को इन सीटों में से केवल 10 सीटों पर ही जीत मिली थी।
राज्य गठन के बाद से ही सीतापुर-एसटी सीट पर अजेय रहे कांग्रेस के वरिष्ठ आदिवासी मंत्री अमरजीत भगत को इस बार हार का सामना करना पड़ा। एक अन्य वरिष्ठ आदिवासी नेता और कांग्रेस के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष मोहन मरकाम अपनी सीट कोंडागांव से हार गए। एसटी समुदाय के लिए आरक्षित सीटों से जीतने वाली वरिष्ठ भाजपा आदिवासी नेता केंद्रीय मंत्री रेणुका सिंह (भरतपुर-सोनहत), सांसद गोमती साय (पत्थलगांव), पूर्व केंद्रीय मंत्री विष्णुदेव साय (कुनकुरी), राज्य के पूर्व मंत्री- रामविचार नेताम (रामानुजगंज), केदार कश्यप (नारायणपुर) और लता उसेंडी (कोंडागांव) हैं। चुनाव से पहले अपनी नौकरी छोड़कर भाजपा में शामिल होने वाले भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) अधिकारी नीलकंठ टेकाम केशकाल सीट से विजयी हुए हैं ।
वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद 2003 में छत्तीसगढ़ में हुए पहले चुनाव में भाजपा उन आदिवासियों के बीच गहरी पैठ बनाने में कामयाब रही, जो कभी कांग्रेस के कट्टर समर्थक माने जाते थे, लेकिन अगले चुनावों में भाजपा उन पर पकड़ खोती चली गई। वर्ष 2003 के विधानसभा चुनाव में 90 सदस्यीय सदन में 34 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए आरक्षित थीं। भाजपा ने तत्कालीन अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को हराकर 25-एसटी आरक्षित सीटों सहित 50 सीटें जीतकर शानदार जीत दर्ज की थी, तब कांग्रेस ने नौ एसटी आरक्षित सीटें जीतीं थी।
इसी तरह, वर्ष 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने आदिवासियों के आशीर्वाद से 50 सीटें जीतकर फिर से सरकार बनाई, तब भाजपा ने 29-एसटी आरक्षित सीटों में से 19 सीटें जीती थीं, जबकि कांग्रेस ने 10 एसटी सीटें जीती थीं। वर्ष 2008 में हुए परिसीमन ने राज्य में एसटी आरक्षित सीटों को 34 से घटाकर 29 कर दिया था।
32 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों के लिए ट्राइबल सब प्लान के तहत बजट को बढ़ाने की जरूरत है। 5वी अनुसूची, पेसा कानून 1996, फारेस्ट राईट एक्ट-2006 अर्थात वनाधिकार अधिनियम विधेयक को पूर्णत: लागू करना बाकी है। ग्रामसभा के अधिकारों को विस्तारित किया जाना चाहिए। आदिवासियों के शोषण व प्रताडऩा को न्यायिक तरीके से समाप्त किया जाना चाहिए।
आदिवासी सलाहकार परिषद का अध्यक्ष आदिवासी ही हो। कार्पोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी अर्थात सीएसआर के साथ डिस्ट्रिक्ट मिनिरल फंड अर्थात माईनिंग क्षेत्रों में जो रायल्टी का प्रतिशत कम्पनियों व लायसेंसधारियों को जमाकर उसका खर्च वहां के लोगों व क्षेत्रों के कल्याण के लिए करना अनिवार्य है इस पर आदिवासियों का विकास निर्भर करता है।
छत्तीसगढ़ भू-राजस्व संहिता 1959 में किसी तरह का बदलाव नहीं होगा एवं जहां आदिवसियों की जो जमीन कानून का उल्लंघन कर ली गई है, उसकी जांच कर उसे वापस देने का प्रावधान किया जाना चाहिए। अनुसूचित जाति के लिए 2011 की जनगणना के आंकड़ों को ठीक से परीक्षण कर उनके आरक्षण को जनसंख्या के अनुपात में लागू किया जाए।कहने का तात्पर्य यह कि आदिवासी जनादेश के कारण कांग्रेस को इस दृष्टिकोण से राज्य का मुख्यमंत्री आदिवासी समाज से चुनना चाहिए।
आज की परिस्थिति में छत्तीसगढ़ में भूमि अधिग्रहण, खनन, जल, जंगल, जमीन, पत्थलगढ़ी, माओवाद, शिक्षाकर्मियों का संविलियन, किसानों के लिए स्वामिनाथन आयोग-2006 की रिपोर्ट को लागू करने, मजदूरों, कर्मचारियों के बेहतर भविष्य जैसी गंभीर समस्याओं से सर्वाधिक आदिवासी समाज जूझ रहा है और इस कारण आदिवासी क्षेत्रों में विकास नहीं हो पा रहा है।
विकास का मतलब चमचमाती रोड, रेलवे और ऊंची इमारतें नहीं होती है। गौरतलब है कि नई सरकार को आदिवासियों से उनके साथ अमानवीय अत्याचारों के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगने की जरूरत है। मार्के की बात यह है कि आदिवासी क्षेत्रों में विकास ना होने के कारण वहां के लोगों को जिन दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है उसे एक आदिवासी व्यक्ति ही समझ सकता है। इसीलिए भाजपा में आलाकमान को आदिवासी सलाहकार परिषद, आदिवासी मुख्यमंत्री के साथ आदिवासी राज का सपना को छत्तीसगढ़ राज्य में नई सरकार गठन के साथ याद रखना होगा।
समूचे आदिवासी समाज का कितना विकास होगा यह बताना मुश्किल है लेकिन यदि हम आदिवासी राज की बात करे तो इससे अवश्य राज्य का विकास होगा और यह तभी सफल होगा जब आदिवासी, दलित, पिछड़ा वर्ग जैसे मूलनिवासियों की पार्टी से विधायक चुनकर जाए। हां जातीय पूंजीवाद, जमींदारी प्रथा, देशी-विदेशी कार्पोरेट सेक्टर को बढ़ावा देने वाली जनसंघर्षों को कुचलने वाली नीतियों से बाज आने की जरूरत है। इन विकृतियों से मुक्त आदिवासी नेतृत्व में आदिवासियों को अपनी पार्टियों के तहत ही आदिवासी मुख्यमंत्री, आदिवासी सलाहकार परिषद का मुखिया तथा ग्राम सभा में आदिवासियों तथा उद्योगों और खेतों में आदिवासियों के नेतृत्व में राष्ट्रीकरण के तहत नए आदिवासी राज्य की बात करनी चाहिए।
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