वे कृषि किसानी और किसान को जिंदा टाँग देना चाहते हैं
संतोष कुंजामआज किसान के लिए ये समझना थोड़ा मुश्किल है कि कमरतोड़ परिश्रम के बाद भी उन्हें उचित दाम क्यों नही मिलता। सबका अन्नदाता अपने परिवार को दो वक्त की रोटी देने मोहताज़ है।

दरअसल कृषि सोची समझी साजिश के तहत महँगी और स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाली बना दी गई है। कॉर्पोरेट लॉबी कृषि को हासिये में डालना चाहती है जिसमें सबका लाभांश बंधा हुआ है सिवाय किसान के ।
आज ज़मीन की उर्वरकता, उत्पादन की गुणवत्ता और बीज की नीतियाँ किसान के हित मे नही। आज कीटनाशक दवाइयां और हाईब्रीड बीज के इस्तेमाल ने न केवल किसान को बर्बाद किया बल्कि मनुष्य के सेहत को तबाह कर दिया है।
आज सरकार की कोई कारगर मशीनरी क्वालिटी और परिणाम के क्या क्या दुष्परिणाम होते हैं इसकी व्यापक निगरानी नही रखते। आज गांवों में भी सुगर बीपी और कई शहरी बीमारियाँ लोगों के सेहत से खिलवाड़ कर रही है।
आज लगभग सभी खाद्य सामग्री कॉर्पोरेट कीटनाशक से भरी पड़ी है। जिसमें सरकार कोई नियंत्रण नही रख पा रही है। पूरा परिस्थितिकीतंत्र के सूक्ष्म स्थूल पर्यावरण संरक्षक व सहायक जीव जंतु विलुप्ति के कगार पर है।
मधुमक्खियों की प्रजातियां लाखों के तादात में मर रही हैं। ख़ामियाजा जल जंगल जमीन और पर्यावरण में असंतुलन पैदा हो रहा है।
किसानों की मांगों पर कॉर्पोरेट कमीशन खाने वालों के अंदर ज़रा भी संवेदनशीलता नही है। पूनम महाजन कंगना रनौत की माने तो ये आतंकवादी हैं, नक्सली हैं।
कृषि, कॉर्पोरेट लाभ कमाने का ज़रिया नही बल्कि सभी हाथों को काम और भरपेट भोजन प्रदान करने वाली भारतीय संस्कृति की संवाहक है और मुकम्मल जीवन संस्कृति हैं। कॉर्पोरेट गिद्धों को सिर्फ लाभ लोभ और पैसा और सिर्फ पैसा ही दिखता है।
Add Comment