आंकड़ों के आईने में छत्तीसगढ़ में विधान सभा चुनाव 2023
जरूरी मसलों का चुनाव से कोई लेना देना नहीं
सुशान्त कुमारदेश में 2014 के मध्य में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार की सत्ता में आने के बाद से आरएसएस देश को हिंदू राष्ट्र के रूप में बदलने सुनियोजित ढंग से आगे बढ़ रही है। दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, गरीब मेहनतकशों और महिलाओं की दिन पर दिन स्थिति बदहाल हो रही है। 2019 के बाद से अडानी अंबानी के सम्पत्तियों में इजाफा हुआ है। छत्तीसगढ़ में जिन जनकल्याणकारी मुद्दों को लेकर कांग्रेस पार्टी सरकार में आई थी उसमें से पत्रकार सुरक्षा कानून और पेसा नियम को लेकर सवाल खड़े हो रहे हैं। शेष रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, रोजगार और पर्यावरण के मुद्दें कहीं नजर नहीं आते हैं। सरकार सभी मतदाताओं को कर्जमाफी, चावल और महिलाओं के खातों पर रकम भेजने जैसी दान, अनुदान, राहत और छूट पर टिकाये रखना चाहते हैं।

मणिपुर से लेकर हरियाणा तथा दिल्ली में प्रर्दशनों से लेकर केरल तक में हमने इन उत्पीडऩ को झेला है। 2024 का आम चुनाव निर्णायक होगा। जीएसटी, नोटबंदी, जीडीपी का 80 प्रतिशत से अधिक की सम्पत्ति शीर्ष एक प्रतिशत अतिअमीरों के पास सुरक्षित है, भुखमरी में हमारा देश 111वें स्थान में पहुंच गया है। रेलवे, बैंक, बीमा, नवरतन और महारतन कंपनियों को नीजिकरण की ओर ले जाया जा रहा है।
छत्तीसगढ़ में 7 और 17 नवंबर को दो चरणों में मतदान हुआ। यहां मौजूदा भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार का सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्टी से है। इसके अलावा राज्य में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़, आम आदमी पार्टी, गोंडवाना गणतंत्र पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, हमर राज पार्टी, मसीही समाज का सर्व आदि दल पार्टियों जैसे अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्रीय दलों के साथ हजारों की संख्या में निर्दलीय भी मैदान में हैं। 33 जिलों के 90 निर्वाचन क्षेत्रों में 1,181 उम्मीदवार भी अपनी तकदीर आजमा रहे हैं।
आंकड़े जो सच बोलती है
कुल मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ 3 लाख 60 हजार 2 सौ चालीस है जिनमें से 1 करोड़ 1 लाख 20 हजार 8 सौ तीस पुरुष मतदाता एवं 1 करोड़ 2 लाख 39 हजार 4 सौ दस महिला मतदाता पंजीकृत हैं। प्रदेश में सेवा मतदाताओं की संख्या 19 हजार 839 है। इस प्रकार सेवा निर्वाचकों को मिलाकर प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 2 करोड़ 3 लाख 80 हजार 79 है। इन मतदाताओं को छत्तीसगढ़ के भाग्य का फैसला करना है।
छत्तीसगढ़ अपने पहले तीन चुनावों, 2003, 2008 और 2013 में बीजेपी ने लगातार लगभग पचास सीटें जीतीं, जबकि कांग्रेस ने 37 से 39 सीटें जीतीं। बसपा, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ (जे) पार्टियों जैसी छोटी पार्टियों ने भी ऊंगुलियों में गिनती के सीटें जीतीं।
भाजपा और कांग्रेस के वोट प्रतिशत में मामूली इजाफा हुआ। भाजपा लगातार मामूली अंतर से आगे रही। 2003 से 2013 तक बीजेपी का वोट शेयर 39.3 फीसदी से बढक़र 42.3 फीसदी हो गया। इस बीच कांग्रेस में भी 36.7 प्रतिशत से 41.6 प्रतिशत तक की समान वृद्धि देखी गई। इस दशक में क्षेत्रीय ताकतों, खासकर जीजीपी और अन्य दलों का क्षरण देखा गया, जिनकी प्रतिशत 19.6 से गिरकर 11.7 हो गया। इस बीच बसपा चार से छह प्रतिशत के बीच झूलती रही।
लेकिन 2018 में इन रुझानों का चुनावों पर खास असर नहीं दिखा। कांग्रेस ने राज्य की 90 में से 68 सीटें और 43.9 प्रतिशत वोट हासिल कर बड़ी जीत दर्ज की। कांग्रेस के प्रचार ढांचा में कुछ बड़े बदलाव का संकेत है, लेकिन राज्य की स्थापना के बाद से धीरे-धीरे हुए लाभ के बाद कांग्रेस के वोट शेयर में मामूली वृद्धि देखी गई। इसके बजाय, 2018 वास्तव में भाजपा के समर्थन में गिरावट दर्ज हुई, जो 33.6 प्रतिशत के वोट शेयर तक गिर गई। यह कांग्रेस से दस प्रतिशत कम है।
इसे हम इस तरह समझ सकते हैं- पहला, राज्य के पहले मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने 2016 में कांग्रेस से उस वक्त नाता तोड़ लिया, जब उनके बेटे अमित को ‘पार्टी विरोधी गतिविधियों’ के लिए पार्टी से बर्खास्त कर दिया गया था। उन्होंने जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ बनाई, जिसके बारे में कई चुनाव विश्लेषकों ने भविष्यवाणी की थी कि इससे कांग्रेस का वोट खिसक जाएगा। इसके बजाय, जेसीसी, जिसने बसपा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के साथ गठबंधन बनाया, ने बीजेपी को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है।
जातिगत एकीकरण ढांचा
जहां गठबंधन मजबूत था, वहां कांग्रेस ने कमजोर उम्मीदवार उतारे और ऐसे उम्मीदवारों का चयन किया, जिन्होंने भाजपा के जातिगत एकीकरण ढांचा को नष्ट कर दिया। इसके साथ ही कुर्मी समुदाय से आने वाले बघेल और साहू समुदाय से आने वाले ताम्रध्वज साहू, अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को एकजुट करने में सक्षम थे, जो अन्यथा भाजपा को वोट दे सकते थे। छत्तीसगढ़ की ओबीसी आबादी काफी बड़ी है, राज्य का अनुमानित 43.5 प्रतिशत, और इसके सबसे बड़े और चुनावी रूप से सबसे प्रभावशाली समुदाय कुर्मी, साहू और यादव हैं। देखना यह है कि क्या जातीय समीकरण छत्तीसगढ़ के चुनावी मानचित्र को बदलने की माद्दा रखते हैं।
छत्तीसगढ़ में पिछले पंद्रह साल से राज्य के आदिवासी बहुल क्षेत्र बस्तर में दो साल से अल्पसंख्यक मसीही समाज के खिलाफ तांडव चल रहा है लेकिन भूपेश बघेल की कांग्रेस सरकार अपने नर्म हिंदुत्व रूख के लाइन पर चलकर मूक दर्शक बने बैठी रही। पिछले चुनाव के पहले 15 साल से राज्य में काबिज भाजपा सरकार अपने मार्गदर्शक आरएसएस के निर्देशों पर आदिवासी से आदिवासी को लड़ाने का खूनी खेल खेलने के साथ साथ, वनवासी कल्याण आश्रम सहित संघ परिवार के आनुषांगिक संगठनों की मदद से आदिवासियों के हिंदूकरण में जोर शोर से जुटी है। 2018 में भाजपा का सूपड़ा साफ कर कांग्रेस को सत्ता सौंपा गया। लेकिन कांग्रेस भी कॉरपोरेट परस्त नीतियों और राम वनगमन पथ, कौशल्या मंदिर एवं गाय गोबर की राजनीति के जरिए संघ परिवार के वैचारिक आधार मनुवादी हिंदुत्व को नए संस्करण में दोहरा रही है।
बघेल ने छत्तीसगढिय़ा पहचान पर काम किया साथ ही भगवा पार्टी से हासिल ओबीसी आधार को बनाए रखने के लिए बीजेपी के हिंदू राष्ट्रवाद का अनुकरण भी किया है। मध्य प्रदेश की तरह, जहां कांग्रेस के पास सामाजिक न्याय के मुद्दे के माध्यम से ओबीसी समर्थन हासिल करने का कोई जरिया नहीं है, राम वन गमन पथ पर काम करना शुरू कर दिया है। बघेल सरकार ने राम की मां कौशल्या को समर्पित एक मंदिर पर काम शुरू कर दिया है और राज्य में भव्य रामायण उत्सवों को भी बढ़ावा देकर रिश्तों के नए समीकरण गढ़ें।
छत्तीसगढ़ में, हिंदू राष्ट्रवाद का विशेष रूप से हानिकारक प्रभाव पड़ा है, जिससे आदिवासी ईसाई समुदायों के खिलाफ हमलों में बढ़ोतरी हुई है। इसे बीजेपी प्रोत्साहित करती है और कांग्रेस सरकार इसके खिलाफ कार्रवाई करने में विफल रहती है। इस वर्ष 2 जनवरी को अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ हिंसा परवान चढ़ी जब हथियारबंद संघी गिरोह ने नारायणपुर जिले के बंगलापारा के सैक्रेड हार्ट चर्च पर हमला कर दिया। मौके पर पहुंचे पुलिस अधीक्षक सदानंद सहित सात पुलिस कर्मी इस घटना में घायल हो गए। इस घटना के बाद पुलिस ने बाध्य होकर एक भाजपा नेता समेत 11 लोगों को गिरफ्तार किया है।
मजे की बात है कि 2 जनवरी को नारायणपुर जिले के भाजपा अध्यक्ष रूपसाय सलाम के नेतृत्व में नारायणपुर में ईसाइयों के खिलाफ भडक़ाऊ सभा का आयोजन किया गया। जिला कलेक्टर अजीत वसंत ने पत्रकारों से कहा कि रुपसाय सलाम और अन्य भाजपा नेता,रैली/सभा को शांतिपूर्ण बनाए रखने का वादा किए हैं। लेकिन करीब 2000 लोग नारायणपुर में इकठ्ठे होकर विश्वपीठ स्कूल और सैक्रड हार्ट चर्च पर हमला कर उसे तहस नहस कर दिया।
राज्य की अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा भी - जो राज्य की आबादी का क्रमश: लगभग बारह और इकतीस प्रतिशत है - 2018 में जेसीसी-बीएसपी-सीपीआई गठबंधन के तहत एकजुट हुआ। हालांकि अजीत जोगी जैसे गतिशील आदिवासी नेता का मई 2020 में निधन हो गया। उनका राज्य के विभिन्न दलित समुदायों के बीच काफी समर्थन था। अपने मुख्यमंत्रित्व काल में उनका तेवर कलेक्टर और पुलिस अधिकारी का ज्यादा रहा है। अमित जोगी के पास उतनी ताकत नहीं है और उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ कहीं अधिक आक्रामक रुख अपनाया है, यहां तक कि उन्होंने पाटन निर्वाचन क्षेत्र में बघेल के खिलाफ भी चुनाव लड़ा है। बसपा इस बार गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के साथ गठबंधन में है।
क्या छत्तीसगढ़ में नए आदिवासी पार्टियां प्रभाव डालेगी?
आदिवासी क्षेत्रों में इस चुनाव में आदिवासी पार्टी प्रभाव डालेगा वह है हमर राज पार्टी का उदय। बताया जाता है कि हमर राज पार्टी की स्थापना आदिवासी संगठनों की एक छात्र संस्था, सर्व आदिवासी समाज द्वारा की गई थी और इसका नेतृत्व आदिवासी राजनेताओं ने किया था, जो पहले दोनों राष्ट्रीय दलों के साथ थे, अर्थात अरविंद नेता और सोहन पोटई जैसे लोग। लेकिन दावा करते थे कि दोनों में से किसी ने भी छत्तीसगढ़ की आदिवासी आबादी के हित में काम नहीं किया। छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन का कहना है कि पूरे बस्तर में माओवादी हिंसा के नाम पर आदिवासियों का दमन चरम पर है। बस्तर की अकूत खनिज संपदा को लूटने के लिए आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों को दरकिनार कर बड़े पैमाने पर सैन्य कैंपों की स्थापना कर पूरे बस्तर में व्यापक सैन्यीकरण किया जा रहा है। भूपेश सरकार के पिछले 5 वर्षो के कार्यकाल में 55 नए कैंप खोले गए हैं।
उनका दावा है कि अबूझमाड़ में सडक़ों और कैंपों की स्थापना करके आदिवासी संस्कृति को खत्म कर वहां के जंगल जमीन को लूटने की तैयारी की जा रही है। हाल ही में 20 अक्टूबर को दो माडिय़ा आदिवासी युवाओं की गोमे में डीआरजी के द्वारा हत्या कर उन्हें माओवादी बताया गया, जबकि दोनों युवा महिलाओं के साथ बाजार से खरीददारी करके वापस जा रहे थे। इसके पूर्व ताड़मेटला में भी दो आदिवासी युवाओं को माओवादी बताकर फर्जी मुठभेड़ में हत्या की गई है।
रावघाट सहित सम्पूर्ण बस्तर में पेसा कानून एवं वनाधिकार मान्यता कानून के उल्लंघन करके खनन परियोजनाओं की स्थापना की जा रही है। विरोध करने पर आदिवासी नेताओं पर फर्जी मुकदमे दर्ज कर उन्हें जेल भेजा जा रहा हैं।
आंदोलन का कहना है कि आदिवासियों को आदिवासियों से लड़ाने की कोशिश पूरे बस्तर में लगातार जारी हैं। एक ओर राज्य सरकार वन निवासियों को वन अधिकार देने का दावा कर रही है, लेकिन दूसरी तरफ जंगलों पर अपना नियंत्रण भी बढ़ा रही हैं। वन विभाग द्वारा संयुक्त वन प्रबंधन समितियों के जरिए कूप कटाई की जा रही है और वह समुदाय आधारित वनों के स्वामित्व को मान्यता देने से इंकार रहा है। इसके अलावा हसदेव अरण्य में अदानी समूह की खनन परियोजना के संबंध में क्या कांग्रेस आदिवासी क्षेत्रों में अपनी सीटें बरकरार रख पाएगी, जिसने पिछले चुनाव में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित 29 सीटों में से 25 सीटें जीती थीं?
अंबिकापुर क्षेत्र विधानसभा में 14 सीटें है - जिनमें से नौ अनुसूचित जनजाति उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं। क्षेत्र ने 2018 तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच सीटों का उचित संतुलन बनाए रखा था। 2018 के चुनावों में कांग्रेस ने यहां की सारी सीटों पर जीत दर्ज की। इस जीत का श्रेय काफी हद तक वरिष्ठ कांग्रेसी नेता और सरगुजा के राजा टीएस सिंहदेव को दिया गया, जिन्हें पिछले अभियान में लगभग बघेल के समान ही पार्टी के चेहरे के रूप में पेश किया गया था और बाद में उपमुख्यमंत्री बनाया गया।
दोनों के बीच रिश्ते खराब चल रहे हैं
दोनों के बीच रिश्ते खराब चल रहे हैं। पंचायती राज मंत्री के रूप में, सिंहदेव ने पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम के नियमों को तैयार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इसे अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए पारंपरिक ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन की अनुमति देने के लिए बनाया गया था। लेकिन बघेल सरकार ने इसके नियमों को गंभीर रूप से कमजोर कर दिया है। और इस पेसा नियम को लेकर आदिवासियों में आक्रोश व्याप्त है। आदिवासियों की सहायता करने वाली नीतियों के प्रति सरकार की नापसंदगी का हवाला देते हुए सिंहदेव ने अपने मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन बाद में समझौते के तहत उन्हें उप मुख्यमंत्री बना दिया गया।
पेसा नियम के मुद्दे अभी भी जारी हैं और संभवत: चुनाव पर इसका असर पड़ेगा, लेकिन शायद अंबिकापुर निर्वाचन क्षेत्र पर ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है। सिंहदेव ने 2008 से अंबिकापुर में बड़ी जीत दर्ज की है और यहां फिर से चुनाव लड़ रहे हैं। मनेंद्रगढ़ सीट पर 2018 में कांटे की टक्कर हुई थी और कांग्रेस महज चार हजार से ज्यादा वोटों से जीती थी। हां इस बीच उनकी संपत्ति 550 करोड़ से लुडक़ कर 447 करोड़ में आ पहुंची हैं।
कांग्रेस के कई कद्दावर नेताओं की मदद से रायपुर, खैरागढ़, डोंगरगढ़, राजनांदगांव और राजिम सहित कई शहरों में तथाकथित धर्मसंसद का आयोजन किया गया और धार्मिक जहर फैलाया गया। मध्य छत्तीसगढ़, अब तक राज्य का सबसे बड़ा क्षेत्र है, जिसमें 64 निर्वाचन क्षेत्र हैं। जहां बताया जा रहा है कि मुख्यमंत्री भूपेश बघेल की अकेले की फिल्डिंग है। दोनों पार्टियां यहां जीत हासिल करने में कामयाब रही हैं, या केवल कुछ ही सीटों के अंतर पर रहीं। 2008 में कांग्रेस को यहां थोड़ी बढ़त मिली थी, जबकि 2013 में भाजपा ने जीत हासिल की। 2018 में इस क्षेत्र में कांग्रेस ने जीत हासिल की। मध्य क्षेत्र में पहले जाति समीकरण का रंग दिखता था लेकिन भूपेश सरकार ने इसे किसानों का चुनावी व्यवस्था बना लिया है।
लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि दोनों पार्टियों को समान रूप से बराबर समर्थन मिलता है। जब हरेक सीट का अध्ययन किया जाता है, तो यह साफ हो जाता है कि राज्य में अधिकांश मौजूदा विधायकों के खिलाफ मजबूत सत्ता विरोधी लहर देखी जा रही है, जबकि राज्यव्यापी रुझान कायम हैं। इस वजह से कांग्रेंस से अपने दो दर्ज विधायकों को बदला है। और कई बागी हो गए हैं। दोनों पार्टियों के लिए और भी निराशाजनक तथ्य यह है कि छोटी पार्टियों ने इस क्षेत्र में अपनी उपस्थिति बनाए रखी है, जिसका सबूत 2018 में जेसीसी और बीएसपी ने क्रमश: 5 और 2 सीटें जीतकर दिया है।
बघेल अपने पारंपरिक गढ़ पाटन से खड़े हैं, जिसका उन्होंने पिछले तीस में से पच्चीस सालों से प्रतिनिधित्व किया है - जिसमें अविभाजित मध्य प्रदेश विधान सभा भी शामिल है। 2008 में वह अपने भतीजे और बीजेपी उम्मीदवार विजय बघेल से चुनाव हार गए थे। इस बार उनका मुकाबला त्रिकोणी है अमित जोगी और विजय बघेल सामने हैं।
2018 में, जेसीसी उम्मीदवार शकुंतला साहू को निर्वाचन क्षेत्र के आठ प्रतिशत वोट मिले, और बसपा पहले भी यहां तीसरे स्थान पर रही थी। यह देखते हुए कि विजय बघेल फिर से सीट से चुनाव लड़ रहे हैं, जेसीसी- और, कुछ हद तक, बीएसपी-जीजीपी गठबंधन- यहां बड़ा लाभ कमा सकता है, क्योंकि बघेल समान समर्थन ब्लॉकों से वोट प्राप्त करते हैं। पड़ोसी दुर्ग ग्रामीण विधानसभा सीट ताम्रध्वज साहू की सीट है। यह एक और सीट है जहां बसपा-जीजीपी गठबंधन की उल्लेखनीय उपस्थिति है। बीरनपुर, बेमेतरा, दुर्ग दक्षिण और कवर्धा तक साहू धु्रवीकरण नजर आ रहा है। पहले भी अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय, मुस्लिम समुदाय, आदिवासी एवं दलितों के बीच सांप्रदायिक धु्रवीकरण की कोशिश होते रही है।
छत्तीसगढ़ में ईडी छोपे और महादेव एप
राज्य में विधानसभा चुनाव के ठीक पहले एनफोर्समेंट डायरेक्टोरेट (ईडी) के छापे कांग्रेस सरकार और पार्टी के कद्दावर लोगों पर पड़े हैं। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पर महादेव एप मामले में 500 करोड़ से अधिक घुस लेने का आरोप लगा। हालांकि जिस व्यक्ति के नाम पर केंद्रीय आर्थिक अपराध निदेशालय ने मुकदमा भूपेश बघेल पर लगाया था उसी व्यक्ति ने कहा कि उसने किसी राजनेता को घूस नहीं दिया। प्रधानमंत्री मोदी, गृहमंत्री अमित शाह से लेकर भाजपा के तमाम दिग्गज नैतिकवान नेताओं द्वारा राज्य में चुनाव प्रचार में आकर केवल नफऱत और विभाजन का जहर फैलाने में और विरोधी नेताओं के खिलाफ असभ्य भाषा के प्रयोग करने में आपस में होड़ मची हुई थी। इस मामले में भारत चुनाव आयोग की भूमिका हमेशा की तरह नाकाफी रही है।
राज्य में बीजेपी के सबसे वरिष्ठ नेता रमन सिंह अपने गढ़ राजनांदगांव से चुनाव लड़ रहे हैं, रमन सिंह को जनता ने छह बार विधानसभा भेजा है। इसे उनका गढ़ माना जाता है। जहां कांग्रेस ने गिरीश देवांगन को अपना प्रत्याशी बनाया है। गिरीश खनिज निगम के अध्यक्ष हैं। कहा जाता है इस सीट से देवांगन के चेहरे में भूपेश बघेल चुनाव मैदान में है। इस सीट में हेमा देशमुख, जितेन्द्र मुदलियार, नवाज खान, विवेक वासनिक, हाफिज खान, निखिल द्विवेदी, कुलबीर छाबड़ा, नरेश डाकलिया जैसे नेताओं की ताकत लगी है। क्षेत्र में रेत, गिट्टी, मुरूम का बेहिसाब उत्खनन और कांग्रेस सरकार की चुप्पी पूर्व मुख्यमंत्री डॉ. रमन सिंह के लिये चुनौती बनकर उभरा है।
रायपुर शहर दक्षिण राज्य में बीजेपी के दूसरे सबसे वरिष्ठ नेता बृजमोहन अग्रवाल की पारंपरिक सीट है। अग्रवाल ने यहां पिछले तीन चुनावों में भारी जीत दर्ज की है। बृजमोहन और मोहम्मद अकबर आम लोगों से सहज मिलने और उनके काम करने वाले नेता कहे जाते हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी द्वारा प्रमुख राज्य नेताओं को दरकिनार किए जाने को देखते हुए अगर बीजेपी जीतती है तो बताया जा रहा बृजमोहन मुख्यमंत्री बन सकते हैं, उन्होंने अतीत में शीर्ष पद के लिए कई प्रयास किए हैं। सिंह को शायद तब राहत मिली जब 2017 में अग्रवाल भ्रष्टाचार घोटाले में फंस गए।
रायपुर के बाहरी इलाके में आरंग निर्वाचन क्षेत्र से मौजूदा विधायक कांग्रेस के शिवकुमार डहरिया चुनाव लड़ रहे हैं, जो राज्य के सबसे प्रभावशाली दलित समुदायों में से एक सतनामी संप्रदाय के नेता हैं। डहरिया राज्य के शहरी प्रशासन मंत्री रह चुके हैं। जोगी के समय की तरह सतनामी प्रभाव कुछ कम हुआ है। संप्रदाय के गुरु बालदास साहेब ने हाल ही में अपना समर्थन भाजपा को दे दिया है और उनके बेटे खुशवंत दास साहेब इस सीट से भाजपा के उम्मीदवार हैं। मामले को और अधिक जटिल बनाने के लिए, आरंग में हमेशा तीसरे स्थान के मजबूत उम्मीदवार देखे गए हैं। मध्य छत्तीसगढ़ की करीबी सीटों में धमतरी, खैरागढ़ और अकलतरा शामिल हैं।
आदिवासी बहुल इलाकों में महिलाओं ने ज्यादा मतदान किया है। छत्तीसगढ़ एक आदिवासी प्रधान राज्य है और प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। जहां जल जंगल जमीन पर अडानी, टाटा, जिंदल, एस्सार जैसी कंपनियों के गिरफ्त में है। राज्य में कुल पोलिंग बूथ 24137 हैं। 3 दिसंबर को 1724 दौर की मतपत्रों की गिनती के बाद चुनाव परिणाम की घोषणा होगी अन्य चार राज्यों के चुनाव परिणाम के साथ बस्तर में राज्य विधान सभा की 12 सीटें हैं। पहले कहा जाता था कि बस्तर से राजमुकूट आता है, अब 2008 से देखा जा रहा है यह प्रवृत्ति खत्म हुई, उस समय कांग्रेस ने इस क्षेत्र में बहुमत हासिल किया लेकिन राज्य हार गई। 2018 में कांग्रेस ने यहां एक सीट को छोडक़र बाकी सभी सीटों पर जीत हासिल की थी।
राज्य के दोनों दलों के सबसे वरिष्ठ आदिवासी नेता इसी क्षेत्र से आते हैं। उदाहरण के लिए, कांग्रेस के कवासी लखमा, जो वर्तमान में उद्योग और उत्पाद शुल्क मंत्री हैं, कोंटा निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं। उनका दोबारा चुना जाना आसान काम नहीं हो सकता, क्योंकि कोंटा में हमेशा कांग्रेस, भाजपा और सीपीआई के बीच त्रिकोणीय मुकाबला देखा गया है। 2018 में सत्ताईस प्रतिशत वोट हासिल करने वाले सीपीआई उम्मीदवार मनीष कुंजाम इस बार भी चुनाव लड़ रहे हैं। हालांकि सीपीआई अन्य राज्यों में कांग्रेस की सहयोगी है। सिलगेर गांव में एक नए सैन्य शिविर का विरोध कर रहे आदिवासियों पर सरकार की कार्रवाई के लिए भी लखमा को कड़ी आलोचना का सामना करना पड़ा। बस्तर की अधिकांश सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करने वाली हमर राज पार्टी यहां चुनाव नहीं लड़ रही है।
क्या इस बार आदिवासी मुख्यमंत्री का सवाल उठेगा?
कोंडागांव से पूर्व राज्य कांग्रेस प्रमुख मोहन मरकाम का मुकाबला भाजपा की पूर्व मंत्री लता उसेंडी से है। उसेंडी ने 2003 और 2008 में सीट जीती, जबकि मरकाम ने 2013 और 2018 में जीत हासिल की। पिछले चुनाव में दोनों के बीच का अंतर अठारह सौ से भी कम वोटों का था। वहां हमर राज पार्टी का भी एक उम्मीदवार है। पार्टी को आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता। पिछले साल अपनी पहली प्रतियोगिता में भानुप्रतापपुर सीट के लिए हुए उपचुनाव में, उसका उम्मीदवार सोलह प्रतिशत से ज्यादा वोट के साथ तीसरे स्थान पर रहा था।
मसीही समाज ने बस्तर में सर्व आदि दल बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं। छत्तीसगढ़ के इतिहास में पहली बार मसीही समाज भी चुनावी मैदान में कूद चुका है। पहले चरण के चुनाव में बस्तर की 9 सीटों पर मसीही समाज ने सर्व आदि दल के बैनर तले नौ प्रत्याशियों को चुनावी मैदान में उतारे हैं। इस दल के राष्ट्रीय अध्यक्ष अरुण पन्नालाल का कहना है कि जगदलपुर, कोंडागांव, केसकाल, चित्रकूट, अंतागढ़ तथा कांकेर से प्रत्याशी उतारे गए हैं।
पीयूसीएल की फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट से खुलासा होता है बस्तर में निर्मित जनजाति सुरक्षा मंच की पहल से नारायणपुर जिले सहित कई स्थानों पर रोको, टोको और ठोको रैली व सभा का आयोजन कर ग्रामीणों को धर्मांतरित ईसाइयों के खिलाफ नफरती भाषण के जरिए भडक़ाया गया। उस दिन भाजपा नेता भोजराम नाग, रुपसाय सलाम,नारायण मरकाम आदि ने धर्मांतरित ईसाई आदिवासियों के खिलाफ डी लिस्टिंग करने, उन्हे सरकारी सुविधाओं से वंचित करने और सामाजिक आर्थिक बहिष्कार करने की मांग की। तब से लगातार ईसाई अल्पसंख्यकों के खिलाफ लोगों को भडक़ाते हुए गत अक्टूबर से संघ परिवार हरकत में आया है।
हिंदुस्तान का नक़्शा एक सलीब के लायक़ दिखता है, जिस पर कुछ अल्पसंख्यक तबकों को कीलों से ठोक दिया जा रहा है
पत्रकार सुनील कुमार का हिंदुस्तान का नक़्शा एक सलीब के लायक़ दिखता है, जिस पर कुछ अल्पसंख्यक तबकों को कीलों से ठोक दिया जा रहा है सवाल बड़ा ही मौजूं है। बस्तर के कांकेर, कोंडागांव और नारायणपुर जिले के विभिन्न गांवों में तब से नफरत की आग सुलग रही है। विधान सभा चुनाव के बाद भी आज तक समाचार मिल रहा है कि मसीही समुदाय के पादरीगण तथा चर्च जाने वाले लोग जिनमें महिलाएं और बच्चे ज्यादा हैं को लगातार मारा पिटा जा रहा है कि वे ईसाई धर्म छोडक़र हिंदू धर्म अपना लें नहीं तो गंभीर परिणाम होंगे। अभी हाल ही में दुर्ग जिले के अंडा के पास विनायकपुर में मसीही समुदाय जब प्रार्थना कर रहे थे तब उन पर बजरंग दल के गुंडों ने हमला किया और धर्मांतरण का आरोप लगाकर उनके साथ मारपीट की। कई जगह मसीही समुदाय का ग्रामों में सामाजिक आर्थिक बहिष्कार किया जा रहा है और उन्हें बलपूर्वक बिना घरेलू सामान के गांवों से बाहर खदेड़ दिया जा रहा हैं।
पिछले साल 18 दिसंबर बस्तर में हिंसा के फलस्वरूप जो विश्वासी/ईसाई लोग गांव से भाग कर फरसगांव (कोंडागांव) में शरण ले रहे थे, उनको प्रशासन द्वारा जबरन गांव वापस भेजा गया। उनमें से ग्राम चिंगनार के लोगों के साथ फिर मार पीट होने की खबर आई। रात को ही पुरुष लोग अपनी सुरक्षा के लिए गांव से निकल कर जंगल में छुप गए थे, पर दूसरे दिन सुबह महिलाओं के साथ बहुत बुरी तरह से मारपीट हुई। उनका सामान भी बाहर निकाल कर फेंका गया। पटवारी और सरपंच महिलाओं को प्राथमिक उपचार के लिए ले गए थे, और फिर वापस गांव में ही छोड़ दिया है। थाने में रिपोर्ट लिखवाने से भी मना कर रहे हैं।
इनके साथ 18 दिसंबर से लगातार मारपीट हो रही थी। सवाल ये है कि जब ये लोग खुद घरबार छोड़ कर भाग कर नारायणपुर/ फरसगांव आए हैं, इन्हे उसी भयावह माहौल में वापस क्यों धकेला जा रहा था? क्या प्रशासन की कोई जिम्मेदारी नहीं थी कि पहले गांव में समझौता करवाए, माहौल को शांत बनाए, फिर इन्हें वापस भेजे और इनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी ले? या फिर वह केवल अपनी जिम्मेदारी से हाथ धोना चाहती थी। नारायणपुर में 20 ग्रामों के 500 ईसाई अल्पसंख्यकों ने शरण लिया था। पहले प्रशासन ने इन्हे खुली जगह रुकवा दिया था, विरोध करने पर नारायणपुर इंडोर स्टेडियम में इन्हें रुकवाया गया है। अपने गर्म कपड़ों, बिस्तर, कंबल, भोजन की व्यवस्था सब मसीही समाज स्वयं कर रहा था, प्रशासन ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया था। 25 दिसंबर को क्रिसमस के दिन बेनूर थाने के अंतर्गत ग्रामों में ईसाई समुदाय पर हमला हुआ। पिछले तीन माह में 500 से अधिक नामजद शिकायतें आरएसएस/भाजपा नेताओं के खिलाफ दर्ज की गई थी लेकिन पुलिस प्रशासन चुप रही।
छत्तीसगढ़ में बीजेपी और कांग्रेस में कांटे की टक्कर
एग्ज़िट पोल
एबीपी न्यूज़-सी वोटर एग्ज़िट पोल के अनुसार यहां भाजपा को 36 से 48 के बीच, कांग्रेस को 41 से 53 के बीच और अन्य पार्टियों को 0 से 4 सीटों पर जीत मिलने का अंदाज़ा दिखाया गया है।
न्यूज़ 24 और टुडे चाणक्य के अनुसार प्रदेश में कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिलने का अनुमान लगाया है। इस एग्ज़िट पोल के अनुसार यहां भाजपा को 25 से 41, कांग्रेस को 49 से 65 और दूसरों को 0 से 3 सीटें मिलने का अनुमान है।
इंडिया टुडे एक्सिस माय इंडिया पोल के अनुसार भाजपा को 36-46, कांग्रेस को 40-50 और दूसरों को 1 से 5 सीटें मिलने का अनुमान है।
इंडिया टीवी के एग्ज़िट पोल के अनुसार यहां कांग्रेस को 46-56, भाजपा को 30-40 और दूसरी पार्टियों को 3 से 5 सीटें मिलने का अनुमान है।
टाइम्स नाउ ईटीजी के सर्वे में यहां कांग्रेस को 48 से 56, भाजपा को 32 से 40 और अन्य को 2 से चार सीटें मिलने का अनुमान हैं।
बताते चले कि छत्तीसगढ़ विधान सभा में 90 सीटें हैं और यहां सरकार बनाने के लिए 46 सीटों की दरकार रहती है।
नोट - 'दक्षिण कोसल' की ओर से किसी तरह का ऑपिनियन या एग्जिट पोल नहीं किया जाता है। ऊपर दिए गए एग्जि़ट पोल के अनुमान विभिन्न एजेंसियों और चैनलों के हैं, जिनके नाम अनुमानों के साथ दिए गए हैं।
राज्य में विधान सभा आम निर्वाचन - 2023 के लिए आदर्श आचार संहिता के प्रभावी होने के बाद से 9 नवम्बर तक की स्थिति में 66 करोड़ 88 लाख रुपए की अवैध धन राशि तथा वस्तुएं जब्त की गई हैं। इनमें 18 करोड़ 13 लाख रुपए की नगद राशि शामिल हैं। मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी कार्यालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार प्रवर्तन एजेंसियों (इन्फोर्समेंट एजेंसीज) द्वारा निगरानी के दौरान विगत 9 नवम्बर तक 47 हजार 846 लीटर अवैध शराब जब्त की गई है, जिसकी कीमत एक करोड़ 37 लाख रुपए है। साथ ही 4 करोड़ 7 लाख रुपए कीमत की अन्य नशीली वस्तुएं भी जब्त की गई हैं। सघन जाँच अभियान के दौरान 20 करोड़ 57 लाख रुपए कीमत के 493 किलोग्राम कीमती आभूषण तथा रत्न भी जब्त किए गए हैं।
इनके अतिरिक्त अन्य सामग्रियां जिनकी कीमत 22 करोड़ 74 लाख रुपए है, भी जब्त की गई हैं। विधान सभा निर्वाचन - 2023 के लिए राज्य में लागू आदर्श आचार संहिता के चलते शराब के अवैध निर्माण, संग्रहण, विक्रय, वितरण एवं परिवहन पर कड़ाई से रोक लगाने के लिए आबकारी विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों की संयुक्त टीम द्वारा जांच-पड़ताल एवं छापामार कार्यवाही का सिलसिला जारी है। आदर्श आचार संहिता के दौरान आबकारी विभाग द्वारा अब तक 33,084 लीटर शराब, 2,07,250 किलो ग्राम महुआ लाहन, 5 किलो गांजा एवं 63 वाहन जब्त किए गए हैं, जिसका बाजार मूल्य 3 करोड़ 11 लाख 83 हजार 223 रूपए है। इसका मतलब है चुनाव दिनोदिन महंगा होता जा रहा है और चुनाव में बेनामी खर्च बढ़ता जा रहा है। ऐसे में आर्थिक रूप से कमजोर और साधारण प्रत्याशियों के लिए चुनाव लडऩा मुश्किल होता जा रहा है।
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