निर्वाचन अधिकारियों ने सम्पादकों के नाम किए विलोपित

विधान सभा चुनाव 2023

सुशान्त कुमार

 

मतदाता सूची में नाम जोडऩे के लिए निर्वाचन अधिकारी काफी सारे दस्तावेजों की मांग करते हैं घर का बिजली बिल भी मांगा जाता है। और तो और प्रार्थी मतदाता के परिवार के लोगों की जानकारी भी जुटाई जाती हैं। इस तरह नाम जोड़ते समय आवेदक की उपस्थिति पर सारी प्रक्रियाओं को पूरा किया जाता है नाम जोडऩे और चुनाव पहचान पत्र को उपलब्ध करवाने में तीन माह से अधिक का समय लगता हैं जिसमें चुनाव अधिकारी के रूप में बीएलओ की अहम भूमिका होती है। 

नाम जोडऩे और चुनाव पहचान पत्र को पहुंचाने का काम पोस्टल विभाग का होता है। यहां यह ध्यान देने वाली बात होती है कि पोस्ट मास्टर सारा निर्वाचन पहचान पत्र बीएललो को सौंप देता है जबकि सभी पहचान पत्र के साथ मतदाता का डाक पता होता है। उसके लिए भी नए मतदाताओं और पहचान पत्र के जरूरतमंदों को बीएलओ और पोस्ट ऑफिस के चक्कर लगाने पड़ते हैं। 

लेकिन नाम काटते समय ना परिवार को जानकारी होती है और ना ही जिसका नाम काटा जाता है उससे व्यक्तिगत पूछताछ की जाती है। जबकि मतदाता का सम्पूर्ण जानकारी के साथ उनका सम्पर्क नम्बर विधान सभावार स्थानीय निर्वाचन कार्यालय में मौजूद होता है। 

जब ‘दक्षिण कोसल’ ने बीएलओ से बात की तो उनका कहना था कि तीन बार सर्वे हुआ जिसमें सुशान्त कुमार शाह अनुपस्थित पाये गए और परिवार ने कहा कि वह यहां नहीं रहते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि नाम काटने के लिए बकायदा लिखित सूचना उनके पास आई थी। 

परिवार का कहना है कि तीनों सर्वे के दौरान कोई भी निर्वाचान अधिकारी घर नहीं पहुंचा। अधिकारियों ने फार्म - 7 उपलब्ध करवाया है, जिसमें परिवार में भाई का नाम का उल्लेख है, लेकिन भाई ने ऐसे किसी भी फार्म को भरकर नाम कटवाने से इंकार किया है। अधिकारियों ने कहा कि चुनाव के बाद प्राथमिकता के साथ नाम जोड़ दिया जाएगा। 

रजिस्ट्रीकरण अधिकारी ने भी इस गलती को स्वीकारा किया और कहा कि चुनाव के बाद प्राथमिकता के साथ नाम जोड़ लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि दावा आपत्ति के बाद नाम जोडऩे की प्रक्रिया बंद हो जाती है जिसके कारण अब चुनाव के पूर्व नाम नहीं जुड़ सकता। लेकिन किसी भी अधिकारी ने इसकी जवाबदेही अपने सिर नहीं ली है।

सवाल यह उठता है कि जब छत्तीसगढ़ राज्य में नए मतदाताओं का नाम मतदाता सूची में शामिल करवाने की पहल तेजी से किया गया हो तो इन सम्पादकों/पत्रकारों के साथ असंख्य लोगों का नाम बिना ठोस सुबूत के क्यों कर विलोपित कर दिया गया?  निर्वाचन अधिकारियों तथा कर्मचारियों ने मतदाता सूची से नाम विलोपित कर एक तरह से नागरिकता खत्म करने की कार्यवाही की है।

 

 

और मतदाता का वोट देने का अधिकार छिन कर संवैधानिक त्रुटियां की है। होना यह चाहिए था कि नाम काटने से पहले व्यक्ति (मतदाता) का भौतिक परीक्षण होना था, नाम उसी स्थिति में काटा जाए जब व्यक्ति दूसरे स्थान में स्थानांतरित हो और उसकी लिखित सूचना विलोपित मतदाता द्वारा दी गई हो या फिर मतदाता के मौत और उसके मृत्यु प्रमाण पत्र की पुष्टि जिला निर्वाचन कार्यालय द्वारा की गई हो। 

निर्वाचन प्रणाली की एक बड़ी खामी यह है कि जब नाम काटा जाता है और विलोपित व्यक्ति निर्वाचन कार्यालय में उपस्थित होता है तो उनका नाम जोडऩे की प्रक्रिया की शुरूआत नहीं होती है बल्कि यह बोल कर टाल दिया जाता है कि चुनाव चल रहा है, सिस्टम बंद है अभी काटे गए मतदाताओं के नाम नहीं जोड़े जाएंगे?

दावा आपत्ति भी हवा हवाई होता है। बकायदा विलोपित व्यक्ति का नाम सार्वजनिक रूप से प्रकाशित या प्रसारित करना चाहिए। इसकी सूचना विलोपित व्यक्ति को व्यक्तिगत रूप से भेजनी चाहिए जैसे चुनाव पहचान पत्र और जानकारियां डाक से या अन्य माध्यमों से भेजी जाती है, और उसके बाद ही नाम काटने अथवा विलोपित करने की प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए।

राजनीतिक गलियारों के जानकारों का कहना है कि इस तरह नाम विलोपित कर सत्ताधारी पार्टियों के लिए रास्ता साफ किया जाता है ताकि दमदार प्रत्याशियों को चुनने में दिक्कत ना आन पड़े।इन बातों में कितनी सत्यता है इसकी पुष्टि करनी बाकी है। अब इसकी जिम्मेदारी कौन लेगा? जब बकायदा मतदाता सूची में नाम होने के बावजूद जबरन मतदाताओं का नाम विलोपित किया जा रहा है। जबकि नाम विलोपित व्यक्ति के पास अपना निर्वाचन पहचान पत्र मौजूद है। 

सुशान्त कुमार शाह ने इसकी शिकायत करते हुए मांग की है कि तत्काल मतदाता सूची में नाम जोड़ा जाए तथा दोषी अधिकारियों तथा कर्मचारियों पर कार्रवाई की जाए। इसके लिए बकायदा मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी, रायपुर (छ.ग.), जिला निर्वाचन अधिकारी, दुर्ग  (छ.ग.) तथा निर्वाचन रजिस्टीकरण अधिकारी, दुर्ग  (छ.ग.) से कार्यालय में तथा  शिकायत पत्र, मेल तथा स्पीड पोस्ट किया है। 

बहरहाल खबर लिखे जाने तक किसी तरह की कार्रवाहियों की सूचना नहीं हो पाई है। जानकारों का कहना है कि शिकायतों को त्वरित हल करने के लिए निर्वाचन आयोग ने उचित व्यवस्था की है लेकिन जमीनी हकीकत यह है कि शिकायतों पर कार्रवाई नहीं हो रही है। मतदान को बाधित करने के लिए देखने में आ रहा है कि बड़ी संख्या में मतदाताओं का नाम काट दिया जा रहा या उन्हें रोकने के लिए बूथ को 100 - 100 किलोमीटर दूर स्थापित किया जा रहा है। आप बताइए तब ऐसी स्थिति में 100 प्रतिशत मतदान का दावा का सच कितना सही है। और चुनाव के दौरान धांधलियों की फेरहिस्त और उस पर कार्रवाई शून्य के बराबर नजर आती है। 


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