अशोका विजयादशमी में धम्मदीक्षा समारोह कौन मनाते हैं?
यहीं पढि़ए बाबा साहब ने आखिरकार धर्मान्तर क्यों किया?
सुशान्त कुमार14 अक्टूबर 1956 को डॉ. बाबासाहब अंबेडकर ने 5 लाख अछूतों को हिन्दू धर्म की कुरूतियों से मुक्ति दिलाते हुए बौद्ध धम्म में दीक्षित किया था। आज भी विजयादशमी के दिन वहां पांव रखने को जगह नहीं होती है। लोग कई दिनों से दूर-दराज व अन्य राज्यों से यहां पहुंचते हैं। पुस्तक मेला व धर्मान्तरण के पलों व क्षणों को देखने, समझने लाखों लोग वहां पहुंचते हैं। जन सैलाब अशोका विजयादशमी के दिन बाबा साहब द्वारा धर्मान्तरण के उन पलों को याद कर बौद्ध धम्म में अपनी प्रतिबद्धता को साबित करने बौद्ध धम्म में दीक्षित होते हैं।

डॉ. बाबासाहब अंबेडकर महापरिनिर्वाण के पूर्व बौद्ध हो गए थे। 1936 में लाहौर के जात-पांत मंडल के वार्षिक अधिवेशन में अंबेडकर ने कहा था कि वर्णभेद ने सार्वजनिक भाव को मार डाला है। वर्णभेद ने सद्गुण को जात-पांत के नीचे दबा दिया है और सदाचार को जात-पांत में जकड़ लिया है। 1935 के भाषण में उन्होंने कहा था कि हमने हिन्दू समाज में समानता का दर्जा हासिल करने के लिए हर तरह की कोशिशें की और सत्याग्रह किए, परन्तु सब बेकार। हिन्दू समाज में समानता के लिए कोई स्थान नहीं है। हिन्दू धर्म का त्याग करने से ही हमारी परिस्थिति में सुधार हो सकेगा। धर्मान्तर के सिवाय हमारे उद्धार का और कोई दूसरा मार्ग नहीं है। यह अंबेडकर की धर्मान्तर की घोषणा का स्वाभाविक परिणाम थी।
ईश्वर भी आकर कहे तो मैं उसकी भी नहीं सुनूंगा
13 अक्टूबर 1935 को येवला कान्फे्रन्स में जीवन में पहली बार धर्मान्तर की घोषणा करते हुए कल्पप्रवर्तक, बोधिसत्व, संविधानवेत्ता अंबेडकर ने कहा था कि दुर्भाग्य से मैं हिन्दू समाज में अछूत पैदा हुआ। यह मेरे बस की बात नहीं थी। परन्तु हिन्दू समाज में बने रहने से इन्कार करना मेरे बस की बात है और मैं निश्चित तौर पर कहता हूं कि मैं मरते समय हिंदू नहीं रहूंगा। यदि साक्षात ईश्वर भी आकर कहे कि हिन्दू धर्म को मत छोड़ों, तो मैं उसकी भी नहीं सुनूंगा।
इस दिन की विडंबना देखिए एक वर्ग रावण को जला रहे होते हैं, दुर्गा के द्वारा महिषासुर का दलन करते हैं, वहीं दीक्षाभूमि में लाखों लोग अपने इतिहास को जीवित करने रावण, महिषासुर, बालि, हिरण्यकश्यप, महाबलि, मेघनाथ, कुंभकरण के इतिहास को जानने व स्थापित करने पुस्तक मेला में पुस्तकें खरीद और पढ़ते दिखाई देते हैं। वास्तव में यह दो संस्कृतियों के बीच के द्वंद्व को उत्पन्न करता पल होता है और एक अद्भुत ऐतिहासिक पल के सभी गवाह बनते हैं।
5 हजार वर्षों के जहालतभरे जिंदगी से जूझने अछूतों की मुक्ति का सिंहनाद
इस वर्ष डॉ. बाबासाहब अंबेडकर द्वारा की गई दुनिया की महानतम धम्मक्रांति को लगभग 67 वर्ष पूरे हो जाएंगे। धम्म चक्र प्रवर्तन के इन 67 सालों में अंबेडकर ने जो धम्म हमें दिया उसे दुनिया में सर्वश्रेष्ठ कहा जाता है। अंबेडकर रचित ‘बुद्ध और उनका धम्म’ यह मानव जीवन के सिद्धांतों एवं मूल्यों पर दुनिया में सर्वश्रेष्ठ जीवन दर्शन एवं मार्ग है। अर्थात यह बौद्धों का बाइबिल है। मई 1950 को अंबेडकर ने अपना अति महत्वपूर्ण लेख जिसमें उन्होंने नई दुनिया की संकल्पना रखी। हमारा ऐसा मानना है कि अंबेडकर ने जो बुद्ध और उनका धम्म एवं 22 प्रतिज्ञाओं से बौद्धों को लैस किया इस धम्म की पुर्नस्थापना की है वह नई दुनिया बनाने का नया धम्म बन कर उभरा। इस धम्म के केंद्र में इंसान एवं नैतिकता है। जिसका उद्देश्य मानव दुखों की मुक्ति कर सच्चाई का राज दुनिया में स्थापित करते हुए इसी जन्म में मानव को मुक्ति दिलाना है।
दुनिया की महानतम धम्मक्रांति में डॉ. अंबेडकर का योगदान
अंबेडकर ने जो धम्म हमें दिया उसे संक्षिप्त में यहां समझा जा सकता है। यह वैश्विक मानवतावाद एवं नैतिकता है। यह विज्ञान अर्थात तर्क, सत्य एवं बुद्धिवाद है, यह समता, स्वतंत्रता, बंधुता व न्याय है। इसमें सभी मानवों का कल्याण है। इसमें सभी जीवों की भलाई है। वे प्रबुद्ध भारत निर्माण के लिए 14 तत्वों पर जोर देते हुए कहते है कि जातिविहीन समाज जिसमें स्त्री-पुरूष समानता हो, न्याययुक्त, नैतिक, आधुनिक।
मानवतावादी समाज, समता, स्वतंत्रता, बंधुता व न्याय पर आधारित लोकतांत्रिक समाज एवं सामाजिक आर्थिक, राजनीतिक, नैतिक, बौधिक व लोकतंत्र, संविधानिक लोकतंत्र, जिसमें अधिकार एवं संरक्षण हो, विज्ञान, तर्क, सत्य एवं बुद्धिवाद के साथ-साथ सभी मानवों का कल्याण, सभी को शिक्षा एवं सबका कल्याण एवं विकास, अपमानित, उपेक्षित, शोषित, लोगों की मानसिक, नैतिक एवं भौतिक मुक्ति, मानव एवं मानव के बीच सही संबंध याने सच्चाई का राज स्थापित करना है।
67 वर्ष बाद भी दीक्षाभूमि की पहिया दू्रतगति से आगे बढ़ता हुआ
बौद्धों की उच्चतम कामयाबी एवं विकास, भारत के सभी लोग धम्म दीक्षित होना कहते हैं। भिक्खू संघ समाजसेवी हो, उपासक जो बुद्ध के धम्म का जीवन जीते हो, एकता, समानता, मानवता एवं संविधानिक लोकतंत्र के आधार पर राष्ट्रवाद एवं प्रबुद्ध राष्ट्र का निर्माण, मानवतावादी एवं प्रबुद्ध बौद्ध संस्कृति एवं सभ्यता का निर्माण करें। इसके साथ धम्म के वैश्विक दृष्टिकोण से प्रबुद्ध विश्व के निर्माण का सपना भी उन्होंने देखा था।
आज भारत को बौद्धमय करने में अंबेडकर के कार्यों का लोग विवेचना कर रहे हैं। हालांकि 14 अक्टूबर 1956 को अंंबेडकर ने धर्मपरिवर्तन किया और अपने 7 लाख अनुयायियों को नागपुर में दीक्षा दी (14 एवं 15 को यदि इसमें 16 का चंद्रपुर का आंकड़ा जोड़ दे तो यह आंकड़ा 10 लाख लोगों से अधिक होता है) परंतु जानकारों का माने तो भारत को प्रबुद्ध बनाने की तैयारी संविधान निर्माण (1946 से 1949) से ही शुरू हो गई थी।
समता-स्वतंत्रता-बंधुता एवं न्याय पर आधारित लोकतांत्रिक एवं मानवतावादी संविधान बनाकर अंबेडकर ने भारत में नई राजनीतिक सभ्यता की नींव रखी। राष्ट्रीय ध्वज पर धम्मचक्र (अशोक चक्र) राजमुद्रा पर सिंहनाद अंकित करते हुए सारनाथ के सम्राट अशोक के कल्याणकारी राज्य के चिन्ह, राष्ट्रपति के आसन पर धम्मचक्र प्रवर्तनाय चिन्हों को अंकित करवाकर उन्होंने सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक संदर्भों की पूर्ति करते हुए नया इतिहास रचा।
इसके आगे की तैयारी के स्पष्ट उल्लेख उनके 2 महत्वपूर्ण लेखों से और कुछ भाषणों एवं व्यक्तिगत चर्चाओं से वृहद जानकारी हमें मिलते हैं। मई 1950 में ही ‘बुद्ध और उनके जीवन का भविष्य’ अपने इस ऐतिहासिक प्रबंध में अंबेडकर ने 3 बातों की जरूरत को प्रतिपादित किया। बुद्धीस्ट बाइबिल का निर्माण करना, भिक्खू संघ के उद्देश्यों, लक्ष्य एवं संगठन में बदलाव करना, विश्व बौद्ध मिशन की प्रस्तावना को फलीभूत करने के कार्य को प्राथमिकता दी।
4 दिसंबर 1954 को रंगून (बर्मा) में अपने व्याख्यान में उन्होंने और 9 बातों बौद्ध राष्ट्रों द्वारा त्याग कर बौद्ध मिशन की स्थापना करना चाहिए एवं आर्थिक दान कर स्त्री पुरूषों की अष्टांगिक मार्ग में दीक्षित करना चाहिए, धर्मांतरण एवं धम्मदीक्षा आंदोलन कर दलित और पिछड़ों को बुद्ध धम्म में दीक्षित करना, बुद्धीस्ट बाइबिल का निर्माण करना, धम्मदीक्षा विधि का निर्माण करना, उपासक प्रचारकों के माध्यम से बौद्धों को उपदेश देना एवं बुद्ध के धम्म का आचरण करवाना, प्रचारकों के लिए बुद्धिस्ट सम्मेलनों का आयोजन कर उन्हें बुद्धिज्म एवं अन्य धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन पढ़ाना, सामूहिक वंदना हर रविवार को विहारों में करना और बाद में उपदेसना देने के साथ मद्रास, मुंबई, नागपुर और दिल्ली में बड़े बुद्धविहारों, उच्च पाठशालाएं एवं कालेजों का निर्माण कर युवाओं में बौद्धमय वातावरण का निर्माण करना।
इस कार्य के लिए धन एकत्रित करते हुए 9 बातों पर प्रकाश डालते हुए 12 चीजों में स्वयं अंबेडकर ने बुद्धीस्ट बाइबल बुद्ध और उनका धम्म दीक्षा विधि का निर्माण कर 22 प्रतिज्ञाएं लेते हुए धर्मान्तरण एवं धम्मदीक्षा आंदोलन की शुरूआत की थी। उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लेते हुए कहा था कि 15 साल के भीतर भारत को बौद्धमय करूंगा। लेकिन उनकी चाहत अधूरी रही और वे महापरिनिर्वाण को प्राप्त कर गए।
डॉ. अंबेडकर द्वारा बौद्ध धम्म में धर्मान्तरण
बताया जाता है कि आज दुनिया के 194 देशों में से लगभग 100 देशों में बुद्ध के धम्म को मानने वाले लोग है। वैसे ही दुनिया कि 22 प्रतिशत आबादी बौद्ध हैं। पूरे यूरोप एवं उत्तर अमेरीका में कनाडा में बुद्ध धम्म की लहर चल रही है तथा यूरोप एवं अमरीका के लोग बौद्ध हो रहे हैं। इसके अलावा मध्य एवं दक्षिण अमेरीका, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, मारिसस, ओमान, तनजानिया, दक्षिण अफ्रिका में भी बौद्ध धम्म को मानने वाले लोग रहते हैं। पूरे एशिया खंड में केवल मध्य एशिया के मुस्लिमों को छोड़ हर देश में बड़े पैमाने में बौद्ध लोग निवास करते हैं।
भारत में 3 प्रतिशत के ऊपर 150 समुदायों ने बौद्ध धम्म को अपनाया है और यह प्रक्रिया पूरे देश में चल रहा है। भारत को प्रबुद्ध भारत बनाने व दुनिया को प्रबुद्ध विश्व बनाने हेतु 16 दिसंबर 1956 को अंबेडकर 10 लाख लोगों को मुबई में बौद्ध धम्म की दीक्षा देने वाले थे। परंतु इस तिथि के पूर्व उनका परिनिर्माण हो गया। उसके बाद देशभर में विभिन्न राज्यों में समय-समय पर धम्म दीक्षा समारोह का आयोजन हो रहे हैं।
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