बीएनसी मिल का इतिहास और मिल्स संघर्ष के जांबाज शहीद

12 सितम्बर 1984 राजनांदगांव गोलीकांड के शहीदों की याद में विशेष

दक्षिण कोसल टीम

 

भारत के स्वाधीन हो जाने के बाद हमारे देश की जितनी भी सरकारें बनी सभी सरकारों ने मजदूरों पर गोलियां चलाई। भारत के मजदूर आन्दोलन का पहला गोली चालन ब्रिटिश हुकूमत ने राजनांदगांव के बीएनसी मिल्स मजदूरों के उपर चलाई, जिसमें एक नवजवान मजदूर जरहू गोंड़ की 21 जनवरी 1924 को बीएनसी मिल्स और कचहरी के मध्य बलदेवबाग में शहादत हुई। जिसे भारत के मजदूर आंदोलन का पहला शहीद कहा जाता है। 

बंगाल नागपुर कॉटन मिल्स, राजनांदगांव की कहानी

राजनांदगांव के इतिहास के अनुसार  राजनांदगांव रियायत के राजा के द्वारा मध्यप्रान्त एवं बरार मिल्स निर्माण की कार्यवाही लगभग 1886 के आसपास शुरू हो गई थी, लेकिन उत्पादन की शुरुआत 1891 में  होने लगी थी। मशीनों की आमद, कच्चे माल की व्यवस्था के लिए राजकोष से वित्तीय प्रबंध लगातार किये जाने से रियासत के लिए मिल एक घाटे का उद्यम बन गया था। 

रियासत के हजारों मज़दूरों को काम मिल रहा है, इस पवित्र उद्देश्य के चलते राजासाहब लगातार नुकसान बर्दाश्त कर रहे थे। आखिरकार श्री एडी यंग हसबैंड पोलिटिकल एजेंट एण्ड कमिश्नर की सलाह से 1895 - 1897 के मध्य प्रसिद्ध अंग्रेज औद्योगिक कॅम्पनी शॉ वालैश ने मिल को खरीदकर राजा साहब के शर्त के मुताबिक बंगाल और नागपुर के मध्य कोई अन्य कॉटन मिल्स न हो के अनुपालन में मिल का नाम दी बंगाल नागपुर कॉटन मिल्स, राजनांदगांव रखा।

मिल में यूनियन का गठन और आंदोलन

यूनियन भवन के निर्माण और संघर्ष के विस्तार की प्रक्रियाओं में इतिहास  और अतीत का यह आवश्यक तथ्य होगा कि भागीदारी आन्दोलन के सफलता के बाद जब मजदूर साथियों, मुखियाओं को यूनियन ऑफिस की जरूरत महसूस होने लगी तब बीएनसी मिल्स के वरिष्ठकर्मी मरहूम गौस मोहम्मद साहब ने अपने आवास के एक हिस्से मे यूनियन ऑफिस के संचालन का प्रस्ताव रखा, उनके आवास में राजनांदगांव कपड़ा मिल्स मजदूर संघ के यूनियन ऑफिस में ही जुलाई - दिसम्बर 1984 का सम्पूर्ण आन्दोलन मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी ने संचालित किया था।

इतिहास की नजर में 1984 का मजदूर आंदोलन

1984 के ऐतिहासिक हड़ताल का का त्रि - पक्षीय समझौता दिनांक 6 दिसम्बर 1984 को हुआ। इस तरह म?दूर आन्दोलन की जब जीत हो गयीं उसके बाद यूनियन के नेताओं ने यूनियन ऑफिस के लिए एक पुराना भवन खरीद लिया। 13 जुलाई 1984 भारत के मजदूर आंदोलन का वह काला दिन था, जब मिल प्रबंधक जिला प्रशासन से सांठगांठ कर मिल के अन्दर मजदूरों पर लाठीचार्ज की गई, अनेक मजदूर घायल हुए 77 मजदूर मुखियाओं को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया।

12 सितम्बर को मजदूरों पर गोलियां चलाई गईं। 6 दिसम्बर 1984 को समझौता हुआ, हड़ताल खत्म हुई। मिल पूर्ववत चलने लगी मिल की उत्पादन और नये यूनियन की अनुशासन के प्रदर्शन से प्रसन्न होकर राष्ट्रीय वस्त्र निगम के तत्कालीन प्रबंध निदेशक कनक राय ने मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी को प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया था।

यूनियन भवन का जीर्णोद्धार

बीएनसी मिल्स में मजदूरों की प्रसिद्ध यूनियन ‘राजनांदगांव कपड़ा मिल्स मजदूर संघ’ के लिए  यूनियन ने जिस भवन को खरीदा था, अब यूनियन का संचालन उसी भवन से हो रही थी। जिस भवन मे नई यूनियन का ऑफिस का जहाँ से संचालन हो रही थीं, वह भवन भी बीएनसी मिल्स के निर्माण काल की थी। बीएनसी मिल्स मजदूर आन्दोलन के अगुवाओ - मुखियाओं ने उस भवन को 36 वर्षो बाद 12 सितम्बर 2022 को शहीद दिवस के अवसर पर यूनियन भवन का जीर्णोद्धार कर नया स्वरूप दे दिया।

भारत के मजदूर आंदोलन का पहला शहीद जरहू गोंड़

भारत के स्वाधीन हो जाने के बाद हमारे देश की जितनी भी सरकारें बनी सभी सरकारों ने मजदूरों पर गोलियां चलाई। भारत के मजदूर आन्दोलन का पहला गोली चालन ब्रिटिश हुकूमत ने राजनांदगांव के बीएनसी मिल्स मजदूरों के उपर चलाई, जिसमें एक नवजवान मजदूर जरहूगोंड़ की 21 जनवरी 1924 को बीएनसी मिल्स और कचहरी के मध्य बलदेवबाग में शहादत हुई। जिसे भारत के मजदूर आंदोलन का पहला शहीद कहा जाता है। उसके बाद बीएनसी मिल्स के ऐतिहासिक मजदूर आंदोलन के दौरान स्वाधीन भारत का पहला गोली चालन जनवरी 1948 को राजनांदगांव में चलाई गई, जिसमें रामदयाल और ज्वालाप्रसाद दो मजदूर शहीद हुए।

1924 को मिल मजदूरों अपनी मांगों के लिए हड़ताल किया। हड़ताल करने का दोषी मानकर 13 मजदूरों गिरफ्तार कर लिये गये। मजदूरों ने अपने साथियों को पुलिस से छुड़ाने का प्रयास किया, पुलिस मजदूरों गोलियां चलाई मजदूर जरहू गोंड़ शहीद हुआ।

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के इतिहास में दूसरा गोलीचालन

छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के आंदोलन में दल्लीराजहरा के बाद दूसरी बार बड़ी गोली चालन। 31अगस्त 1984 को मजदूर नेता शंकर गुहा नियोगी को गिरफ्तार कर लिया गया। 12 सितम्बर 1984 को अविभाजित मध्यप्रदेश के अर्जुनसिंह सरकार की पुलिस ने बीएनसी मिल्स राजनांदगांव के मजदूरों पर बर्बर गोलियां बरसाई  जिसमें दो मजदूरों जगत सतनामी, घनाराम देवांगन और बालक राधे ठेठवार को मोतीपुर बस्ती में गोली लगने से शहादत हुई। जबकि शहीद मेहतरू देवांगन को एक दिन पहले 11 सितम्बर 1984  को मैनेजमेंट के गुण्डों ने लाठी-तलवारों से लैस होकर उस समय प्राणघातक हमला किया।

जब जुलूस शांतिपूर्वक नारा लगाते हुए बीएनसी मिल्स के जीएम बंगला को पार कर अपने यूनियन ऑफिस की ओर जा रहे थे, जुलूस के सामने का हिस्सा यूनियन ऑफिस पहुंच गयीं थी। इस अनापेक्षित हमले से जुलूस में अफरा -  तफरी मच गयी। हमलावरों ने जुलूस के अंतिम छोर पर चल रहे मजदूरों पर प्राणघातक हमला किया जबकि जुलूस का एक हिस्सा मोतीपुर यूनियन कार्यालय पहुंच गयीं थी। हमला इतना संघातिक और सुनियोजित था कि साथी मेहतरू देवांगन अगले ही दिन रायपुर के दाऊ कल्याणसिंह अस्पताल मे उनकी शहादत हो गयीं।

अमर शहीदों का पैगाम, जारी है संग्राम!

साल 1984 में राजनांदगांव की बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा के लाल - हरे झंडे के तले राजनांदगांव कपड़ा मिल्स मजदूर संघ नाम की यूनियन का गठन किया। इसके नेतृत्व में मजदूरों ने मिल की कार्यदशा, अत्यधिक तापमान और श्रम कानूनों के तहत उपलब्ध सुविधाओं के लिए जुझारू संघर्ष किया था। दल्लीराजहरा के खदान मजदूरों ने इस संघर्ष को आर्थिक एवं सक्रिय समर्थन देते रहे। 

दल्लीराजहरा में खदान मजदूरों की एक सभा मे अपनी गिरफ्तारी के पहले नियोगी द्वारा 28 अगस्त 1984 को दिया गया ऐतिहासिक भाषण मजदूर आंदोलन के लिए हमेशा प्रेरणादायी रहेगा। मजदूरों के शिक्षण की दृष्टि से नियोगी ने जिस तरह राजनांदगांव में मजदूरों के संघर्ष का इतिहास को तराशा था, वह उनकी जन शिक्षण के बारे में गहरी समझ की मिसाल है।

13 जुलाई 1984 को अत्यधिक तापमान के कारण तरासन खाते की महिला मजदूर देवंतीनबाई  मुर्छित होकर गिर पड़ी। जनरल मैनेजर का ऑफिस के बाहर से प्रवेश करने पर मिल के द्वार के बांए से लगा हुआ था। मज़दूर देवंतीनबाई को लेकर जीएम ऑफिस के पास आ गये उपचार और तापमान की मांग करने लगे। 

मजदूरों की मांगों को अनसुनी की जाती रही, धीरे - धीरे मजदूर टाईम ऑफिस के आसपास आम पेड़ के नीचे जमा होने लगे। मिल प्रबंधक मजदूरों के समस्या के समाधान के बदले पुलिस प्रशासन के साथ मिलकर इतिहास का वह कहर बरपा किया जो ‘राजनांदगांव के इतिहास का काला दिन’ के तौर याद किया जाता रहेगा। भारत के इतिहास में कारखाना के भीतर लाठीचार्ज कर, न केवल श्रमिकों के साथ - पैर तोड़ दिए अपितु मानवीय संवेदनाओं और स्थापित श्रम प्रावधानों को भी तोड़ दिया।

मजदूर आंदोलन और नई दिशा

बीएनसी मिल्स ( बंगाल नागपुर कॉटन मिल्स ) राजनांदगांव के छह महीने के आन्दोलन से पूंजीपति वर्ग और प्रशासन ने इस बात को महसूस किया है कि लाल - हरे झंडे की राजनीति न केवल खदान, मिल मजदूरों की राजनीति थी, अपितु किसान वर्ग और आदिवासियों की राजनीति की दिशाबोध कराती है। शंकर गुहा नियोगी की राजनीति तमाम मेहनतकश वर्ग की राजनीति है। सारी दुनिया की दौलत, मजदूर और किसान के खून, आंसू और पसीने से पैदा हुई है। लेकिन इस पर सफेदपोश लुटेरे वर्ग ने कब्जा कर लिया है। मजदूर वर्ग जन आन्दोलन, जनसंघर्ष के जनदिशा के जरिये ही इसको पा सकता है।

बीएनसी मिल्स और मजदूर आंदोलन का रिश्ता

बीएनसी मिल्स का निर्माण जिस राजनीतिक परिस्थिति में हुआ है वह निर्णायक दौर था। मिल मजदूरों का आन्दोलन के साथ छत्तीसगढ़ के इतिहास का गहरा सम्बंध है। इन परिस्थितियों को समझना भविष्य की जनदिशा की राजनीतिक के जरूरी लगता है। लगभग 1891 के आसपास बीएनसी मिल्स का निर्माण हुआ। उस समय देश मे ब्रिटिश हुकूमत थी, मिल रियासत के अधीन थी। अंग्रेजी हुकूमत देश के दूरस्थ इलाकों तक अपनी प्रशासन तंत्र का पहुंच बनाने के लिए रेल्वे का विकास  के लिहाज से बीएनआर (बंगाल नागपुर रेल्वे) का निर्माण 1871 में किया गया। 

उद्योगों के स्थापना के साथ मजदूरों का शोषण भी तेज

इससे एक ओर छत्तीसगढ़ी जनता के लिए दूर देश जाने का रास्ता बना। दूसरी ओर शोषकों के लिए शोषण करने का दरवाजा भी खुल गई। मेहनती छत्तीसगढ़ी मजदूरों को ठेकेदारों ने अन्य स्थानों पर जैसे कोयला खदानों, चाय बागानों, ईंट भट्ठों, निर्माणी काम, मिट्टी कटाई के काम से दूर - दराज दूसरे प्रान्तों में ले जाने लगे।

तिलक के गिरफ्तारी का विरोध और रामाधीन गोंड़ की शहादत

भारत के मजदूर आन्दोलन मे बीएनसी मिल्स के मजदूरों की अहम् भूमिका रही है। साल 1908 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने बाल गंगाधर तिलक को गिरफ्तार किया तब तिलक की गिरफ्तारी के विरोध में अपनी राजनीतिक चेतना की मिसाल प्रस्तुत करते हुए बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने हड़ताल कर दिया। उभरते जंगल सत्याग्रह को कुचलने के लिए ब्रिटिश हुकूमत ने सत्याग्राहियों पर उस समय गोलियां चलाई जब बादराटोला जंगल सत्याग्रह के अगुआ बुद्धूलाल को गिरफतार कर लें जाने लगी उस गोलीकांड मे बादराटोला के एक नवजवान रामाधीन गोंड 21 जनवरी 1939 को शहीद हुआ। 

रामदयाल और ज्वालाप्रसाद की शहादत

इस गोलीबारी के विरोध मे बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने काम बंद कर 5 फरवरी 1939 को रेल्वे स्टेशन राजनांदगांव में गोलीकांड के विरोध में ऐतिहासिक सभा किया। मार्च 1948 में बीएनसी मिल्स के हड़ताली मजदूरों पर मोतीतालाब के पास गोली चलाई गयीं जिसमें दो मजदूर साथी रामदयाल, ज्वालाप्रसाद शहीद हुए।

समसीरबाई, भूलिनबाई और कचराबी हुए शहीद

9 जनवरी 1953 को छुईखदान के तहसील कचहरी से कोषालय का खैरागढ़ स्थानांतरण किये जाने के विरोध में जो प्रदर्शन हुआ उस जंगी प्रदर्शन को तितर - बितर करने लिए भयंकर गोलियां बरसाई गयीं जिसमें 5 लोगों की जाने गयीं और 34 प्रदर्शनकारी बुरी तरह जख्मी हुए। इस गोलीबारी में पं. द्वारिकाप्रसाद तिवारी, पं. बैकुण्ठप्रसाद तिवारी, समसीरबाई, भूलिनबाई और कचराबी शहीद हुए। 

दत्ता सामंत के आंदोलन को समर्थन

प्रख्यात मजदूर नेता दत्ता सामंत ने बम्बई के टेक्सटाइल मजदूरों के मांगो के समर्थन के लिए 20 दिसम्बर 1982 को अखित भारतीय हड़ताल का आह्वान किया तो बीएनसी मिल्स के मजदूरों ने बाबू प्रेमनारायण वर्मा की अगुवाई मे उस हड़ताल का समर्थन किया था। इस आंदोलन के समर्थन के बदले में बीएनसी मिल्स मैनेजमेंट ने प्रख्यात मजदूर नेता प्रेमनारायण वर्मा को निलम्बित कर दिया था।

इतिहास में बीएनसी मिल्स में आंदोलन का आगाज कब?

यह भी ऐतिहासिक संयोग है, कि 1916 में ठाकुर प्यारेलालसिंह ने वकालत पास किया। 1919 में जालियांवाला बर्बर जनसंहार ने सम्पूर्ण भारत में ब्रिटीश हुकूमत के खिलाफ जनांदोलन का सैलाब उमड़ पड़ा। बीएनसी मिल्स के मजदूर आन्दोलन का आगाज़ भी 1920 से होती है। मजदूरों की यह हड़ताल 37 दिनों तक चली रियासत ने इस हड़ताल के लिए ठाकुर प्यारेलालसिंह, राजूलाल शर्मा, शिवलाल जैसे मजदूर मुखिया को उत्तरदायी ठहराया।

इतिहास के अनुसार साल 1936 में ठाकुर प्यारेलालसिंह के रियासत से निष्कासन के विरोध में जबर्दस्त आन्दोलन हुआ। रियासत को ठाकुर साहब का निष्कासन रद्द करना पड़ा।

22 नवम्बर 1937 को प्रबंधक ने मिल को कुछ अरसे के लिए बंद कर दिया

जब मिल चालू हुई तो रियासत के कहने पर कल्याण अधिकारी किशोरीलाल शुक्ल ने जैक्सन रिपोर्ट लागू करने का प्रयास किया, मजदूरों ने भयंकर विरोध किया। मिल मैनेजमेंट ने 400 मजदूरों को कार्य से पृथक कर दिया। प्रख्यात  श्रमिक नेता रूईकर ने इस अवैधानिक कार्यवाही के विरोध में शॉ वालैश कम्पनी का अखिल भारतीय स्तर पर विरोध का मुहिम चलाया था। फलत: श्रमिकों को काम पर रखना पड़ा।

इस तरह कब तक मजदूर - किसान, छात्र, नौजवान, दलित, आदिवासी, अल्पसंख्यकों के छाती से ल़हू बहता रहेगा? कहा जाता है कि जब तक पूंजीवाद का खात्मा नहीं हो जाता, और जब तक मजदूरों का राज कायम नहीं हो जाता।


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