संस्कृति, परम्परा एवं प्रतिष्ठा आधारित अपराध और हिंसा पर विशाल सम्मेलन
सामाजिक - आर्थिक बहिष्कार का मुकाबला कैसे करें?
सुशान्त कुमारभारत में संस्कृति, परम्परा एवं प्रतिष्ठा आधारित अपराध और हिंसा से बड़ी संख्या में लोग प्रभावित हो रहे हैं, विशिष्ट तौर पर दलित - आदिवासी जातियां, सीमान्त महिलायें, धार्मिक अल्पसंख्यक और एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के युगल ज्यादातर प्रभावित हो रहे हैं. सामाजिक - आर्थिक बहिष्कार के मामलों में ऐसा हौव्वा खड़ा किया जाता है कि बहिष्कृत व्यक्ति अथवा समुदाय ने पूरे समाज का कोई बड़ा नुकसान किया है, जबकि जनसंगठनों ने अपने जमीनी तथ्यान्वेषण में यह पाया है कि ऐसे बहुतायत मामले नैतिक पुलिसिंग का परिणाम होता है, जो कि धार्मिक - जातीय - पितृसत्ता के विधानों की अवहेलना करने वाले व्यक्ति और समुदायों का निगरानी कर उन्हें दासता की जंजीरों से कसकर जकड़े रखना चाहता है.

यह भी उल्लेखनीय है कि कट्टरपंथी ताकतों ने समाज - धर्म पर खतरा के नाम पर भड़का कर ऐसे मौकों को दंगा का रूप देने संगठित साजिश रचने में कोई कसर नहीं छोड़ा है.
हम दुनियां के सबसे बड़े लोकतंत्र में अपनी पसंद के व्यक्ति से सुरक्षित रूप से सम्बन्ध बनाने/लिव इन सम्बन्ध में रहने की स्वतंत्रता के बिना जी रहे हैं. हम दो भारत में रह रहे हैं, एक ओर जहां कुछ सम्बंधों को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है.
वहीं दूसरी ओर भिन्न खान-पान, रहन-सहन, वेश - भूषा, विचित्र और विविध अभिरुचि, भिन्न विश्वाश तथा मत रखने वाले व्यक्ति, परिवार और समुदाय को संवैधानिक राज्य तंत्र पर हावी हो चुके समाज में वर्चस्वशाली जातिसत्ता, धर्म सत्ता, पितृसत्ता के द्वारा रोटी - बेटी, आग - पानी सम्बन्ध तथा सामाजिक - आर्थिक बहिष्कार, जीविकोपार्जन के संसाधनों से बेदखलीकिया जा रहा है.
जबरन अलगाव, जबरदस्ती व्यक्तियों के बाल काटने और चेहरे तथा अन्य हिस्सों में रंग-रोगन करने, उन्हें नंगा/ निर्वस्त्र कर घुमाने, बंधक बनाने,भारी आर्थिक जुर्माना, मृत्युदंड और यहाँ तक कि मौत के बाद उनके शवों तक को कब्र से खोदकर बाहर निकालने और नीचा दिखाने तथा अपमानित किये जाने के परिणाम भुगत रहे हैं.
सम्मान आधारित अपराधों के मूल में भारतीय समाज में प्रचलित जाति, लिंग और धर्म आधारित भेदभाव है. यह लम्बे समय से परम्परा के नाम पर चली आ रही सामाजिक विधानों और धार्मिक तथा जातिगत कट्टरता एवं हाल के वर्षों में प्रभावशाली गुटों की ओर से हिन्दुराष्ट्र और वोटों के ध्रुवीकरण के मकसद से एक सोची - समझी रणनीति के तहत देश में जिस तरह का माहौल निर्मित किया जा रहा है.
उसने इस पुराने कलह के अंगारों को हवा दी है. इस कारण भारतीय समाज का एक व्यापक हिस्सा उनके नैसर्गिक गाँव - बसाहटों तथा जीविकोपार्जन के संसाधनों से नस्ल (Xenophobia), प्रतिष्ठा और हिंसा आधारित सामाजिक - आर्थिक बहिष्कार के लगातार शिकार हो रहे हैं.
प्रतिष्ठा आधारित और सामाजिक - आर्थिक बहिष्कार सम्बन्धी घटित हो रहे अपराधों के सम्बन्ध में कोई विश्वसनीय आंकड़ा उपलब्ध नहीं है. राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल 2014 से अब तक प्रतिष्ठा आधारित हत्या (ऑनर किलिंग) के केवल 540 केस रिपोर्ट हुए हैं.
इससे पता चलता है कि प्रतिष्ठा आधारित अपराधों को बहुत कम रिपोर्ट किया जा रहा है क्योंकि ये आंकड़े वास्तविक जमीनी आंकड़ों, संचार माध्यमों में लगातार आ रही ख़बरों तथा गैर शासकीय संस्थानों द्वारा एकत्र की गयी रिपोर्ट से बहुत वपरीत है. एक अनुमान के मुताबिक सामाजिक- आर्थिक बहिष्कार के 50,000 से अधिक घटनाएँ अकेले छत्तीसगढ़ प्रदेश में घटित हुए हैं.
भारतीय समाज में प्रतिष्ठा आधारित अपराधों पर रोकथाम के लिये देश में (महाराष्ट्र राज्य को छोड़कर ) कोई विशेष कानून अस्तित्व में नहीं है. छत्तीसगढ़ में पूर्ववर्ती भाजपा की सरकार ने एक ड्राफ्ट बिल/ विधेयक प्रस्तावित किया था, लेकिन उस समय प्रदेश के अधिकतर जातीय संगठनों ने एक राय होकर इस तर्क व आधार पर उस विधेयक का मुखालफ़त किया था.
इससे सदियों से चली आ रही परम्परा अनुसार समाज/जाति और पितृसत्ता का व्यक्तियों तथा नागरिकों पर से नियंत्रण ख़त्म हो जावेगा. वर्तमान में सामाजिक - आर्थिक बहिष्कार के अपराधो पर भारतीय दंड संहिता के प्रावधानों और अनुसूचित जाति - जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत मुकदमा चलाये जाते हैं.
प्रतिष्ठा आधारित अपराधों की जटिलता और खतरनाक प्रवृतियों को कम नहीं आँका जा सकता है और कोई कानून नहीं होने और मामलों को निर्धारित करने का कोई निश्चित तरीका नहीं होने की वज़ह से प्रतिष्ठा आधरित अपराधों के मामलों में अपराध सिद्ध होने की संभावना अत्यंत कम रह जाती है.
लॉ कमीशन ने अलग कानून बनाने की सिफारिश की है. सर्वोच्च न्यायलय भारत की ओर से शक्ति वाहिनी बनाम यूनियन ऑफ़ इंडिया के 27 मार्च 2018 के फैसले में प्रतिष्ठा आधारित अपराधों के लिए अलग कानून की जरूरत पर जोर देते हुए निर्णय पारित किया गया है.
उपरोक्त सन्दर्भ में पीयूसीएल छत्तीसगढ़ की राज्य इकाई के पहल पर और समस्त सहभागी संगठनों गुरुघासीदास सेवादार संघ, कानूनी मार्गदर्शन केंद्र, छत्तीसगढ़ नागरिक संयुक्त संघर्ष समिति, दलित आदिवासी मंच, निवेदिता फाउंडेशन, छत्तीसगढ़ प्रोग्रेसिव क्रिस्चियन अलायन्स, छत्तीसगढ़ विज्ञान सभा, अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति, महिला मुक्ति मोर्चा, आदिवासी शक्ति संगठन, आदिवासी भारत महासभा, आल इंडिया प्रोग्रेसिव वीमेन एसोसिएशन छत्तीसगढ़ शामिल हैं.
इसके अलावा दलित अधिकार अभियान, जीवन विकास मैत्री संगठन जाति उन्मूलन आंदोलन, क्रांतिकारी सांस्कृतिक मंच, दलित मूवमेंट एसोसिएशन, आल इंडिया पीपुल्स फोरम, आल इंडिया लायर्स एसोसिएशन फॉर जस्टिस छत्तीसगढ़, दलित ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स नेटवर्क के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित राज्य स्तरीय संगोष्ठी में नागरिक अधिकारों के संरक्षण के लिये आप सबों के एकजुटता की अपील की गई है.
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